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4. भाई सुखीआ मांडन

भाई सुखीआ मांडन भाई मांडन के बेटे, भाई ऊदा सिंघ के पोते और भाई नाथू के पड़पोते थे। आप राठौर राजपूत परिवार से संबंध रखते हैं। गुरू हरगोबिन्द साहिब जी के समय में आप सोधरा जिला वज़ीराबाद जो कि अब पाकिस्तान में हैं, रह रहे थे। आप पहले खैरपुर, जिला मुजफ्फरगढ़ जो मुल्तान से 120 किलोमीटर की दूरी पर है, में रहते थे। भाई सुखीआ मांडन जी भाई मनी सिंघ परिवार के संबंधी थे। आप भाई मनी सिंघ जी के सगे फूफा जी थे। आपकी सरदारनी बीबी मुलकी, भाई मनी सिंघ जी की सगी बूआ थी और भाई बल्लू शहीद की बेटी थीं। भाई सुखीआ मांडन महिराज के युद्ध में लल्ला बेग द्वारा लाई गई मुगल फौजों के साथ यु़द्ध करते हुए शहीद हुए थे। शहीद होने से पहले आपने मुगल फौज के एक मुखी इब्राहीम खान और बहुत सारे सिपाहियों को मौत के घाट उतार दिया था। भाई सुखीआ मांडन अपने परिवार में शहीद होने वाले शायद पहले ही शख्स थे। पर आपके परिवार में से कई और भी लोग श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब जी की फौज में शामिल थे और वह श्री अमृतसर साहिब और रूहीला में हुई लड़ाईयों में अपने जौहर दिखा चुके थे। इसमें भाई सुखीआ मांडन के पिता मांडन के भाई, बिहारी जी रूहीला के युद्ध में सबसे आगे की पँक्तियों में खड़े होकर लड़े थे। उन्होंने हमलावर फौज के आगू भगवाना घेरड़ को मौत के घाट उतारा था और उसके पुत्र रतनचँद को बुरी तरह से जख्मी किया था। भाई सुखीआ मांडन के बाद भी इस परिवार के कई लोग गुरू साहिब की फौज में शामिल रहे। भाई सुखीआ का पोता भाई देवा सिंघ (पुत्र भाई जोगा) जो 8 अक्टूबर 1700 के दिन निरमोहगढ़ की लड़ाई में शहीद हुआ था। उसके एक पोते भाई बजर सिंघ (पुत्र भाई रामा) ने श्री गुरू गोबिन्द सिंघ साहिब जी को शस्त्र विद्या दी थी। ये भाई बजर सिंघ चप्पड़चिड़ी की लड़ाई में 13 मई सन 1710 के दिन शहीद हुआ था। भाई बजर सिंघ जी के तीन और भाईयों ने भी शहीदी जाम पिया था। इसमें से भाई जीता सिंघ और भाई नेता सिंघ जी ने 13 अक्टूबर 1700 के दिन निरमोहगढ़ में शहीदी जाम पिया। जबकि भाई उदै सिंघ जी (दूसरे वाले, सरसा नदी पर हुई लड़ाई वाले नहीं) ने 1734 में भाई मनी सिंघ जी के साथ शहीदी जाम पिया। भाई सुखीआ मांडन की पड़पौती बीबी भिख्खां (पुत्री भाई बजर सिंघ जी) भाई आमल सिंघ नच्चणा की सिंघणी थी। बीबी भिख्खां 6 दिसम्बर 1705 के दिन शाही टिब्बी के नजदीक झख्खीआं दी जूह में भाई जीवन सिंघ (जैता जी, गुरू गोबिन्द सिंघ जी के समकालीन) के कंधे से कंधा मिलाकर लड़ीं और शहीद हुईं। इस परिवार में से अगली पँक्तियों में, भाई हिम्मत सिंघ, भाई सेवा सिंघ, भाई मान सिंघ, भाई मोहर सिंघ, भाई काहन सिंघ और कई और सिंघों ने भी अलग-अलग मौकों पर शहीदी जाम पीये।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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