36. भाई परागा जी (परागदास)
भाई परागा जी सिक्ख तवारीख के शहीदों में एक थे। आप रूहिला (हरगोबिन्दपुर) में
भगवान दास घेरड़ और चन्दू के पुत्र कमरचँद द्वारा लाई गई फौज के साथ लड़ते हुए शहीद
हुए थे। भाई परागदास जी, भाई गौतम के सुपुत्र थे। आप जी भार्गव ब्राहम्ण परिवार से
संबंध रखते थे। भाई गौतम जी श्री गुरू नानक देव जी के समय में सिक्ख धर्म में शामिल
हुए थे। श्री गुरू नानक साहिब जी के साथ आपका मेल गुरू साहिब जी की एक उदासी के समय
(धार्मिक यात्रा) के समय हुआ था। गुरू साहिबान जी ने आपकों एक मँजी (मिशनरी, सीट)
दी हुई थी। आपने सारे पौठार में सिक्खी का बहुत प्रसार किया था। आपकी यादगार ग्राम
करियाआ, पाकिस्तान में बनी हुई थी। जब श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब जी ने फौज बनाई तो
भाई परागदास अपने कई साथियों सहित उसमें शामिल हुए थे। जब गुरू साहिबान जी ने सारी
फौज को पाँच जरनैलों में जत्थेबन्द किया तो इन पाँचों जरनैलों में भाई परागदास जी
भी शामिल थे। आप जी ने सिक्ख फौजियों को सच्ची शिक्षा दी। जब भगवानदास घैरड़ और
करमचँद ने रूहिला पर हमला किया तो आप जी आगे बढ़कर लड़े और हाथों-हाथ लड़ाई में
हमलावारों के छक्के छुड़ाए। आखिर में हमलावार कई साथियों को मरवाकर और बूरी हार खाकर
मैदानेजँग से भाग गए। 6 दिन बाद चन्दू और मुगलों की मिलीजूली फौज ने फिर हमला कर
दिया। लड़ाई में भाई परागदास बड़ी बहादूरी के साथ लड़े और दुशमनों का खात्मा करते हुए
आप भी शहीद हो गए। भाई परागदास जी के वारिसों ने भी गुरू घर की बड़ी सेवा की। आप जी
का पोता दीवान दरगहमल, श्री गुरू हरिराये साहिब जी से लेकर श्री गुरू गोबिन्द सिंघ
साहिब जी के समय तक गुरू घर का दीवान-ए-वजीर रहा। आप जी का पड़पोता भाई धर्म सिंघ भी
श्री गुरू गोबिन्द सिंघ साहिब जी का दीवान रहा।
महत्वपूर्ण नोटः श्री गुरू तेग बहादर साहिब जी के साथ
शहीद होने वाले भाई मतीदास और भाई सतीदास दोनों ही भाई परागदास जी के पड़पोते थे।