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35. भाई किशना जी

भाई किशना जी भी श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब जी की फौज में एक प्रमुख सिपाही थे। वो बहुत ही बहादुर और जोशीले जवान थे। रूहीला (हरगोबिन्दपुर) की लड़ाई में उन्होंने भी बहादूरी के खूब जौहर दिखाए। पहले दिन की लड़ाई में भगवानदास घैरड़ की फौज के खिलाफ डटकर लड़े। इसके 6 दिन बाद भगवानदास घैरड़ का पुत्र जालँधर से मुगल सूबेदार को भी साथ ले आया। इस दिन भी सिक्खों ने बहादूरी के खूब जौहर दिखाए। इस दिन की लड़ाई के शुरू में भाई जटू और भाई मथरा ने बहुत सारे मुगल सिपाली मार दिए। कुछ समय बाद मुगल जरनैल ने अपने जवानों को एकत्रित किया और दुबारा हमले के लिए उकसाया। इधर सिक्ख फौजों के पाँच जरनैल भी डटकर आगे आए। इन पाँचों में भाई नानू, भाई कलियाणा, भाई जगना, भाई किशना और भाई मौलक (मलूका) थे। भाई जटू, भाई मथरा और भाई नानू और मौलक (मलूका) जी की शहीदी के बाद भाई किशना ने सिक्ख फौजों की बागडौर सम्भाली और अपने साथियों की शहीदी का उनके दिल में बहुत रौष था। उन्होंने बड़ी तेजी के साथ तलवार चलानी शुरू कर दी। कुछ ही पल में उन्होंने मुगल फौजों के मुखी नवी बख्श और उसके भाई करीमबख्श को मार दिया। इसके बाद उन्होंने कई मुगल सिपाहियों को मौत के घाट उतारा। यह सभी कुछ उन्होंने बहुत ही कम समय में कर दिया। पर जल्दी ही भाई किशना जी भी शहीद हो गए।

महत्वपूर्ण नोट: श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब जी की फौज में किशना नाम के दो सिक्ख थे। इस बात की पुष्ठी भट वहियों (लेखों) में है, उसमें एक और किशना का जिक्र आता है, जो कि करतारुपर जालँधर की लड़ाई में शहीद हुए थे। यह किशना भाई कउले (कौल जी) के पुत्र, भाई अम्बीये के पौते और भाईकरन के पड़पौते थे और चौहान राजपूत खानदान से संबंध रखते थे।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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