34. भाई जगना जी
भाई जगना जी भी छठवें गुरू साहिबान जी के समय में एक प्रमुख सिक्ख थे। जब गुरू
साहिबान जी ने फौज गठित की तब भाई जगना जी भी उसमें शामिल हुए। रूहिला (हरगोबिन्दपुर)
की लड़ाई में उन्होंने बहादुरी के खूब जौहर दिखाए। पहले दिन की लड़ाई में वो भगवानदास
घैरड़ की फौज के खिलाफ डटकर लड़े। 3 अक्टूबर के दिन भगवानदास घैरड़ का पुत्र जालँधर से
मुगल सूबेदार की सँयुक्त सेना लेकर आ गया। इस लड़ाई में सिक्खों ने बहादूरी के खूब
जौहर दिखाए। इस दिन की लड़ाई के शुरू में भाई जटटू और भाई मथरा जी ने बहुत सारे मुगल
सिपाही मार दिए। कुछ समय बाद मुगल जरनैल ने अपने सिपाहियों को एकत्रित किया और
दुबारा हमला करने के लिए उकसाया। इधर सिक्ख फौजों के पाँच जनरैल भी डटकर आगे आए। इन
पाँचों में भाई नानू, भाई कलियाणा, भाई जगना, भाई किशना और भाई मौलक (मलूका) थे।
भाई जटू, भाई मथरा और भाई नानू और मौलक (मलूका) की शहीदी के बाद भाई किशना ने सिक्ख
फौजों की बागडौर सम्भाली। भाई जटटू, मथरा भट, नानू, मौलक और किशना की शहीदी के बाद
उन्होंने (भाई जगना जी ने) सिक्ख फौजों की बागडौर सम्भाली। इधर मुगल फौजों की कमान
मुहम्मद यार खान के पास थी। भाई जगना जी तीर चलाने में बहुत ही महारत रखते थे। उनका
और मुहम्मद यार खान के तीरों का मुकाबला हुआ। तीर खत्म होने के बाद दोनों ने तलवारें
सम्भाल लीं। तलवान चलाने में भी भाई जगना जी को बहुत महारत हासिल थी। इस हाथों-हाथ
लड़ाई में दोनों को ही तलवारों के बहुत घाव लगे थे। इसके बावजूद भी दोनों लड़ते ही रहे।
आखिर में भाई जगना जी ने मुहम्मद यार खान को खत्म कर दिया और फिर आप भी शहीद हो गए।