33. भाई कलियाणा जी
भाई कलियाणा जी पाँचवें गुरू और छठवें गुरू साहिबान जी के समय एक प्रमुख सिक्ख थे।
वो बिंदराओ (बिंदरा) खत्री परिवार से संबंध रखते थे। रूहीला (हरगोबिन्दपुर) में
उन्होंने भी बहादूरी के बहुत जौहर दिखाए। 3 अक्टूबर के दिन भगवानदास घैरड़ का पुत्र
जालँधर से मुगल सूबेदार की सँयुक्त सेना लेकर आ गया। इस लड़ाई में सिक्खों ने बहादूरी
के खूब जौहर दिखाए। इस दिन की लड़ाई के शुरू में भाई जटटू और भाई मथरा जी ने बहुत
सारे मुगल सिपाही मार दिए। कुछ समय बाद मुगल जरनैल ने अपने सिपाहियों को एकत्रित
किया और दुबारा हमला करने के लिए उकसाया। इधर सिक्ख फौजों के पाँच जनरैल भी डटकर आगे
आए। इन पाँचों में भाई नानू, भाई कलियाणा, भाई जगना, भाई किशना और भाई मौलक (मलूका)
थे। भाई जटू, भाई मथरा और भाई नानू और मौलक (मलूका) की शहीदी के बाद भाई कलियाणा जी
ने सिक्ख फौजों की बागडौर सम्भाली। इनकी अगुवाई में सिक्ख फौजों ने अली बख्श
मुहम्मद यार और बहुत सारे मुगल जरनैल और सिपाही मार गिराए। यह देखकर मुगलों को भी
बहुत रौष आया। मुगल जरनैल नबी बख्श जो कि जालँघर के सूबेदार का पुत्र था और वो
तलवार का बड़ा धनी था, वो भाई कलियाणा जी की तरफ आया। दोनों में खूब जंग हुई। आखिर
में नबी बख्श की तलवार भाई कलियाणा जी के सिर में लगी और वो वहीं पर गिर पड़े। पर
उन्होंने गिरते-गिरते भी नबी बख्श पर तलवार का एक भरपूर वार किया और उसे भी वहीं पर
ही ढेर कर दिया। भाई कलियाण जी की शहीदी को गुरूबिलास पातशाही छेवीं का लेखक इन
शब्दों में ब्यान करता हैः
कड़ा कड़ी बाहै किरपाना ।।123।।
गिर गिर पतर सूर बलवाना ।।
बड़ो पुत्र तब खान रिसायो ।।
नबी बख्श जिह नाम कहायो ।।
आणत हनी तेग तब भारी ।।
कलयाणे के सीस मझारी ।।124।।
गिरत तांहि अस तेग चलाई।।
नबी बख्श के प्रान गवाई।।