32. भाई मौलक (मलूका) जी
भाई मौलक (मलूका) जी पाँचवें गुरू और छठवें गुरू साहिबान जी फौज के एक बहादुर सिपाही
थे। रूहीला (हरगोबिन्दपुर) की लड़ाई में उन्होंने भी बहादूरी के बहुत जौहर दिखाए।
27 सितम्बर और 3 अक्टूबर की पहले दिन की लड़ाई में वो भगवानदास घेरड़ की फौज के खिलाफ
डटकर लड़े। 3 अक्टूबर के दिन भगवानदास घैरड़ का पुत्र जालँधर से मुगल सूबेदार की
सँयुक्त सेना लेकर आ गया। इस लड़ाई में सिक्खों ने बहादूरी के खूब जौहर दिखाए। इस
दिन की लड़ाई के शुरू में भाई जटटू और भाई मथरा जी ने बहुत सारे मुगल सिपाही मार दिए।
कुछ समय बाद मुगल जरनैल ने अपने सिपाहियों को एकत्रित किया और दुबारा हमला करने के
लिए उकसाया। इधर सिक्ख फौजों के पाँच जनरैल भी डटकर आगे आए। इन पाँचों में भाई नानू,
भाई कलियाणा, भाई जगना, भाई किशना और भाई मौलक (मलूका) आदि थे। भाई जटू, भाई मथरा
और भाई नानू और मौलक (मलूका) की शहीदी के बाद भाई कलियाणा जी ने सिक्ख फौजों की
बागडौर सम्भाली। इनकी अगुवाई में सिक्ख फौजों ने अली बख्श मुहम्मद यार और बहुत सारे
मुगल जरनैल और सिपाही मार गिराए। भाई नानू जी ने बहुत तलवार चलाई और लाशों के ढेर
लगा दिए और इसके बाद भाई नानू जी भी शहीद हो गए। भाई नानू जी की शहीदी को देखकर भाई
मौलक (मलूका) जी बहुत रौष और गुस्से में आ गए। भाई मौलक (मलूका) जी और उनके साथी
सिक्खों ने मुगलों को अली-अली बोलने पर विवश कर दिया और वो जिधर निकल जाते वहाँ पर
लाशों के ढेर लग जाते थे। इनमें से प्रमुख सिक्ख जरनैल भाई बलवंड थे। आखिर में
लड़ते-लड़ते भाई मौलक (मलूका) जी आप भी शहीदी का जाम पी गए। भाई मौलक (मलूका) जी की
शहीदी को गुरूबिलास पातशाही छेवीं का लेखक इन शब्दों में ब्यान करता हैः
तबै कोध कै मोलकं तेग झारी ।।
हता ऐक दीवान सैना हतारी ।।
बलवंड मारयो सु जोधा अपारी ।।
धनं मोलकं सूर भाखै बलारी ।।
मचा घोर संग्राम मोलकं हतायो ।।
नभं सुंदरी लै चली सूर भायो ।।