3. भाई त्रिलोका जी
भाई त्रिलोका जी भी पाँचवें गुरू श्री गुरू अरजन देव साहिब के एक प्रॅमुख सिक्खों
में से एक थे। वह ग़ज़नी के बादशाह की फौज में एक ऊँचे ओहदे पर कार्यरत थे। गुरू
बिलास पातशाही के अनुसार उन्हें रोज 50 रूपये तनखाह के रूप में मिलते थे। एक दिन
सैनिक अधिकारियों के साथ भाई त्रिलोका जी को शिकार पर जाना पड़ा, अकस्मात एक हिरनी
त्रिलोका जी के सामने पड़ गई। उन्होंने हिरनी के पीछे घोड़ा भगाया और इस हिरनी को
तलवार से दो भागों में काट दिया। हिरनी गर्भवती थी। अतः उसके बच्चे भाई त्रिलोका जी
के समक्ष मर गए। इस दुर्घटना का भाई जी के कोमल दिल पर गहरा आघात हुआ। वह
प्रायश्चित करने लगे किन्तु अब क्या हो सकता था, उन्होंने स्वचिंतन प्रारम्भ किया
और पाया कि यदि मेरे पास घातक शस्त्र ने होता तो यह हत्या सम्भव ही नहीं होनी थी।
अतः उन्होंने इस्पात (फौलाद) की तलवार के स्थान पर लकड़ी की तलवार बनाकर धारण कर ली।
समय व्यतीत होने लगा। एक दिन सैनिक अधिकारी ने अकस्मात सभी जवानों के शस्त्र
निरीक्षण किए। उसने आदेश दिया कि सभी जवान एक कतार में खड़े हो जाएँ और अपने शस्त्रों
का मुआयना करवाएँ। भाई त्रिलोका जी यह हुक्म सुनते ही सकते में आ गए। उनको अहसास
हुआ कि उनसे भूल हुई है, यदि काठ की तलवार उसके अधिकारी ने देख ली तो नौकरी तो गई,
इसके साथ दण्ड रूप में गद्दारी का आरोप भी लगाया जा सकता है। ऐसे में उनका ध्यान
गुरू चरणों में गया। वह मन की मन प्रार्थना करने लगे कि हे गुरूदेव ! मैं
विपत्तिकाल में हूँ। मुझे आपके अतिरिक्त कहीं और से सहायता सम्भव नहीं है। अतः मेरी
लाज रखें और मुझे इस सँकटकाल से उभार लें। दूसरी ओर श्री अमृतसर साहिब जी में श्री
गुरू अरजन देव साहिब जी दरबार साहिब में विराजमान थे कि अकस्मात उन्होंने एक सेवक
को आदेश दिया कि तोशे खाने से एक तलवार लेकर आओ। सेवक तुरन्त तलवार लेकर हाजिर हुआ।
गुरू जी ने वह म्यान में से बाहर निकाली और उसे घुमा फिराकर संगत को दिखाने लगे जैसे
कि शस्त्रों की तेज धार का निरीक्षण किया जा रहा हो। कुछ क्षणों बाद उसे फिर से
म्यान में रखकर तौशेखाने में वापिस भेज दिया। संगत को इस प्रकार गुरू जी द्वारा
तलवार दिखाना अदभुत लगा। एक सेवक ने जिज्ञासा व्यक्त की और गुरू जी से प्रश्न पूछ
ही लिया। आज आप तलवार से क्यों खेल रहे हैं। उत्तर में गुरू जी ने कहा कि समय आएगा
तो आप स्वयँ ही इस भेद को भी जान जाएँगे। भाई त्रिलोका जी प्रार्थना में खो गए। सभी
जवान बारी-बारी से अपनी तलवारों का मुआयना करवा रहे थे। आखिर त्रिलोका जी की बारी
भी आ गई। उन्होंने गुरू जी का दिल में नाम लिया और उन्हें समर्थ जानकर म्यान से
तलवार निकालकर अधिकारी को दिखाई। तलवार की चमक अधिकारी की आखों में पड़ी और वह चौंक
गया इसलिए उसने इस तलवार को दो तीन बार पलटकर देखा और आश्चर्य में पड़ गया और उसके
मुख से निकला ईल्लाही-शमशीर अर्थात अदभुत तलवार तभी उसने भाई त्रिलोका जी को
पृस्कृत करने की घोषणा कर दी। भाई जी इस चमत्कार के लिए गुरू जी के लिए कृतज्ञता
में अवाक खड़े रहे और उनके नेत्रों से प्रेम से आँसू बह निकले। जब श्री गुरू
हरगोबिन्द साहिब जी ने अपनी फौज का गठन किया तो भाई त्रिलोका जी भी उसमें शामिल हो
गए और वह गुरू का चक्क (श्री अमृतसर साहिब जी) ही रहने लग गए। वह गुरू जी के खास
दरबारी सिक्खों में से पहचाने जाने लगे। जब मुगल फौजो ने श्री अमृतसर साहिब जी पर
हमला कर दिया तो भाई त्रिलोका जी ने इस युद्ध में भाग लिया और शत्रुओं पर गाज बनकर
गिरे और मुगलों को मौत नामक दुलहन के दर्शन करवाए। शाही फौज श्री अमृतसर साहिब जी आ
पहुँची। गुरू जी को इतनी जल्दी हमले की उम्मीद नहीं थी। जब लड़ाई गले तक आ पहुँची तो
गुरू जी ने लोहा लेने की ठान ली। पिप्पली साहिब में रहने वाले सिक्खों के साथ गुरू
जी ने दुशमनों पर हमला कर दिया। शाही फौजों के पास काफी जँगी सामान था, पर सिक्खों
के पास केवल चड़दी कला और गुरू जी के भरोसे की आस। भाई तोता जी, भाई निराला जी, भाई
नन्ता जी, भाई त्रिलोका जी जुझते हुये शहीद हो गये। दूसरी तरफ करीम बेग, जँग बेग,
सलाम खान किले की दीवार गिराने में सफल हो गये। दीवार गिरी देख गुरू जी ने बीबी वीरो
के ससुराल सन्देश भेज दिया कि बारात अमृतसर की ब्जाय सीघी झबाल जाये। (बीबी वीरो जी
गुरू जी की पुत्री थी, उनका विवाह था, बारात आनी थी।) रात होने से लड़ाई रूक गयी, तो
सिक्खों ने रातों-रात दीवार बना ली। दिन होते ही फिर लड़ाई शुरू हो गयी। सिक्खों की
कमान पैंदे खान के पास थी। सिक्ख फौजें लड़ते.लड़ते तरनतारन की तरफ बड़ी। गुरू जी आगे
आकर हौंसला बड़ा रहे थे। चब्बे की जूह पहुँचकर घमासान युद्व हुआ। भाई त्रिलोका जी ने
इस युद्ध में बहादुरी से लड़ते हुए शहीदी प्राप्त की और वह भी इस युद्ध के 13 शहीद
सिक्खों में शामिल हो गए। गुरू जी ने सारे शहीदों के शरीर एकत्रित करवाकर अन्तिम
सँस्कार किया। 13 सिक्ख शहीद हुये जिनके नामः
1. भाई नन्द (नन्दा) जी
2. भाई जैता जी
3. भाई पिराना जी
4. भाई तोता जी
5. भाई त्रिलोका जी
6. भाई माई दास जी
7. भाई पैड़ जी
8. भाई भगतू जी
9. भाई नन्ता (अनन्ता) जी
10. भाई निराला जी
11. भाई तखतू जी
12. भाई मोहन जी
13. भाई गोपाल जी
शहीद सिक्खों की याद में गुरू जी ने गुरूद्वारा श्री सँगराणा
साहिब जी बनाया