28. भाई कीरत भटट जी
भाई कीरत भटट जी भाई भिखा भटट के सुपुत्र, भाई रईआ के पोते और भाई नरसी जी के पड़पोते
थे। आप गुरू चक (श्री अमृतसर साहिब जी) में हमलावरों से मुकाबला करते हुए और उन्हें
चीरते हुए शहीद हुए। भाई कीरत भटट जी पाँचवें गुरू, श्री गुरू अरजन देव साहिब जी के
समय से प्रॅमुख सिक्खों में से एक थे। आप कौशिश गौड़ ब्राहम्ण परिवार से संबंध रखते
थे। एक तवारीखी मौके मुताबिक आप उन दिनों सुलतानपुर, जिला कपूरथला के वासी थे और
अक्सर गुरू के चक्क (श्री अमृतसर साहिब जी) आते रहते थे। जब श्री गुरू हरगोबिन्द
साहिब जी ने अपनी फौज का गठन किया तो आप भी फौजी गुण और युद्ध आदि का अभ्यास करके
फौज में शामिल हुए। आप शस्त्र चलाने में बहुत ही माहिर थे। जिस समय गुरू हरगोबिन्द
साहिब जी अपनी बेटी बीबी वीरो जी के विवाह की तैयारियों में व्यस्त थे। तभी
कुलीटखान जो गर्वनर था ने अपने फौजदार मुखलिस खान को 7 हजार की फौज के साथ, श्री
अमृतसर साहिब जी पर धावा बोलने के लिए भेजा। शाही फौज श्री अमृतसर साहिब जी आ पहुँची।
गुरू जी को इतनी जल्दी हमले की उम्मीद नहीं थी। जब लड़ाई गले तक आ पहुँची तो गुरू जी
ने लोहा लेने की ठान ली। पिप्पली साहिब में रहने वाले सिक्खों के साथ गुरू जी ने
दुशमनों पर हमला कर दिया। शाही फौजों के पास काफी जँगी सामान था, पर सिक्खों के पास
केवल चड़दी कला और गुरू जी के भरोसे की आस। भाई तोता जी, भाई निराला जी, भाई नन्ता
जी, भाई त्रिलोका जी जुझते हुये शहीद हो गये। दूसरी तरफ करीम बेग, जँग बेग, सलाम
खान किले की दीवार गिराने में सफल हो गये। दीवार गिरी देखकर गुरू जी ने बीबी वीरो
के ससुराल सन्देश भेज दिया कि बारात अमृतसर की ब्जाय सीघी झबाल जाये। (बीबी वीरो जी
गुरू जी की पुत्री थी, उनका विवाह था, बारात आनी थी)। रात होने से लड़ाई रूक गयी, तो
सिक्खों ने रातों रात दीवार बना ली। दिन होते ही फिर लड़ाई शुरू हो गयी। कई सिंघ
शहीद हो चुके थे और इनमें भाई कीरत भटट जी भी शामिल थे। भाई कीरत भटट जी के कलाम को
श्री गुरू अरजन देव जी ने श्री गुरू ग्रंथ साहिब जी में शामिल किया है। भाई कीरत
भटट जी के आठ सलोक गुरूबाणी में दर्ज हैं। भाई कीरत भटट जी के आठ सलोक में से चार
सलोक गुरू अमरदास जी की शखसियत के बारे में हैं और बाकी के चार सलोक गुरू रामदास जी
की शखसियत के बारे में ब्यान करते हैं।