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27. भाई बल्लू जी

(भाई मनी सिंघ जी का दादा) भाई बल्लू जी भाई मूला के पुत्र और भाई राओ के पोतरे थे। आप राजपूतों के परिवार और खानदान से संबंध रखते हैं। इनका पिछोकड़ हिमाचल की रियासत नाहन थी। यह 16वीं सदी में नाहन से मुलतान में चले गए थे और यहीं के एक गाँव अलापुर, जिला मुजफरगढ़ जो अब पाकिस्तान में है, रहने लग गए। भाई मूला जी गुरू घर के बड़े श्रद्धालू थे। भाई मूला जी के 14 पुत्र थे, इनमें भाई बल्लू जी सबसे बड़े थे। जब श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब जी ने फौज का गठन किया तो भाई बल्लू जी उसमें शामिल हुए। भाई बल्लू जी का श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब जी के साथ बहुत स्नेह था। जब श्री हरगोबिन्द साहिब जी ग्वालियर के किले में नजरबन्द थे तब भाई बल्लू जी अक्सर ग्वालियर जाया करते थे। जब गुरू जी ग्वालियर के किले से रिहा होकर श्री गोइँदवाल साहिब जी पहुँचे तो भाई बल्लू जी उन सिक्खों में से एक थे जो कि गुरू जी को सबसे पहले मिलने पहुँचे। 28 जनवरी 1620 वाले दिन जब श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब जी की जहाँगीर से कलानौर, जिला गुरदासपुर में मुलाकात हुई तो भी भाई बल्लू जी गुरू साहिब जी के साथ थे। जब श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब जी अपने ताऊ प्रिथीचँद के गाँव गोहर गए तब भी भाई बल्लू जी उनके साथ थे। इसी प्रकार जब श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब जी 28 फरवरी गुरू का चक्क (श्री अमृतसर साहिब जी) पहुँचे तो भी भाई बल्लू जी उनके साथ थे। श्री अमृतसर साहिब जी की लड़ाई में भाई बल्लू जी ने बड़ी ही बहादूरी दिखाई। उन्होंने मुगल जनरैल दादू और जल्ला को मौत के घाट उतार दिया। अंत में कई मुगलों को मारने के बाद आप भी शहीद हो गए। शहीदी के समय भाई बल्लू जी की उम्र 74 साल थी। इतनी उम्र के बावजूद उन्होंने रणक्षेत्र में लड़ाई के खूब जौहर दिखाए।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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