26. भाई भानूं जी
भाई भानूं बहिल जी राजमहल कस्बे के वासी थे। वह गुरू हरगोबिन्द साहिब जी के समय के
एक प्रॅमुख सिक्ख थे। भाई भानूं जी बड़े ही तगड़े, जोशीले और बहादुर सिक्ख थे। वह गुरू
साहिब, गुरूबाणी और सिक्ख धर्म में बड़ी श्रद्धा रखते थे। श्री अमृतसर साहिब जी में
जब श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब अपनी पुत्री बीबी वीरो जी के विवाह मी तैयारियों में
व्यस्त थे, बारात आनी थी। तब भाई भानूं जी भी इस विवाह समारोह में शामिल होने के
लिए श्री अमृतसर साहिब जी पधारे। जिस समय गुरू हरगोबिन्द साहिब जी अपनी बेटी बीबी
वीरो जी के विवाह की तैयारियों में व्यस्त थे। तभी कुलीटखान जो गर्वनर था, ने अपने
फौजदार मुखलिस खान को 7 हजार की फौज के साथ, श्री अमृतसर पर धावा बोलने के लिए भेजा।
शाही फौज श्री अमृतसर साहिब जी आ पहुँची। गुरू जी को इतनी जल्दी हमले की उम्मीद नहीं
थी। जब लड़ाई गले तक आ पहुँची तो गुरू जी ने लोहा लेने की ठान ली। पिप्पली साहिब में
रहने वाले सिक्खों के साथ गुरू जी ने दुशमनों पर हमला कर दिया। शाही फौजों के पास
काफी जँगी सामान था, पर सिक्खों के पास केवल चड़दी कला और गुरू जी के भरोसे की आस।
भाई तोता जी, भाई निराला जी, भाई नन्ता जी, भाई त्रिलोका जी जुझते हुये शहीद हो गये।
दूसरी तरफ करीम बेग, जँग बेग, सलाम खान किले की दीवार गिराने में सफल हो गये। दीवार
गिरी देखकर गुरू जी ने बीबी वीरो के ससुराल सन्देश भेज दिया कि बारात अमृतसर की
ब्जाय सीघी झबाल जाये। (बीबी वीरो जी गुरू जी की पुत्री थी, उनका विवाह था, बारात
आनी थी)। रात होने से लड़ाई रूक गयी, तो सिक्खों ने रातों.रात दीवार बना ली। दिन होते
ही फिर लड़ाई शुरू हो गयी। इस लड़ाई में भाई भानूं जी ने खूब जौहर दिखाए। एक तो वह
बहुत ही तगड़े थे और दूसरा बहुत ही बहादुर सूरमें थे, उन्होंने रणक्षेत्र में
हाहाकार मचा दिया और एक के बाद एक मुगलों को मौत की दुलहन से परिचय करवाने लगे। भाई
भानूं जी ने मुगल जनरैल शम्स खान समेत कई अधिकारियों को मौत की नींद सुला दिया।
लेकिन शम्स खान के साथ हुई हाथों-हाथ लड़ाई में वह शहीद हो गए, लेकिन जाते-जाते वह
शम्स खान को भी साथ ले गए।