25. भाई मोहन जी और भाई गुपाल जी
भाई मोहन जी और भाई गुपाल जी श्री गुरू अरजन देव साहिब जी के समय में प्रमॅख सिक्ख
थे। वह श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब जी के समय में अक्सर श्री अमृतसर साहिब जी आते
रहते थे। जब श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब जी ने फौज का गठन किया तो भाई मोहन जी और
भाई गुपाल जी इस फौज में शामिल हुए। उन्होंने विभिन्न प्रकार के अस्त्र-शस्त्र चलाने
की शिक्षा हासिल की। श्री अमृतसर साहिब जी पर जब मुगलों ने हमला किया तो भाई मोहन
जी और भाई गोपाल जी बड़ी ही बहादुरी के साथ लड़े। यह दोनों ही आगे की पँक्तियों में
आगे आकर लड़े। और इस युद्ध में कई मुगलों को मौत के घाट उतारने के बाद शहीदी हासिल
की। उनकी बहादुरी का जिक्र गुरू बिलास पातशाही छेवीं में इस प्रकार से आता हैः
निहालू तखतू ऐ बड सूरे मोहन गुपाला प्रण के पूरे ।।
यह भी कहा जाता है कि मोहन और गुपाल दो अलग-अलग सिक्ख नहीं थे
और एक ही शख्स का नाम मोहन गुपाल था। गुरूबिलास पातशाही छेवीं में यह दोनों इक्टठे
ही आए हैं। जैसे गुरू बिलास पातशाही छेवीं में और भी इस प्रकार के दो नाम आए हैं
जैसेः परस राम और सकतू। अतः यह कहा जा सकता है कि यह सिक्ख अलग-अलग दो सिक्ख थे।