24. भाई तखतू जी
भाई तखतू जी भी, श्री गुरू अरजन देव जी के समय के प्रॅमुख सिक्खों में से एक थे। वह
श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब जी के समय अक्सर श्री अमृतसर साहिब जी आया करते थे। जब
श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब जी ने अपनी फौज बनाई तो भाई तखतू जी ने भी इस फौज का
हिस्सा बने। उन्होंने अलग-अलग तरह के हथियार चलाने की शिक्षा ग्रहण की। धीरे-धीरे
वह गुरू जी की फौज के एक अहम जरनैल बन गए। जिस समय श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब जी
अपनी बेटी बीबी वीरो जी के विवाह की तैयारियों में व्यस्त थे। तभी कुलीटखान जो
गर्वनर था, ने अपने फौजदार मुखलिस खान को 7 हजार की फौज के साथ, श्री अमृतसर पर धावा
बोलने के लिए भेजा। शाही फौज श्री अमृतसर साहिब जी आ पहुँची। गुरू जी को इतनी जल्दी
हमले की उम्मीद नहीं थी। जब लड़ाई गले तक आ पहुँची, तो गुरू जी ने लोहा लेने की ठान
ली। पिप्पली साहिब में रहने वाले सिक्खों के साथ गुरू जी ने दुशमनों पर हमला कर दिया।
शाही फौजों के पास काफी जँगी सामान था, पर सिक्खों के पास केवल चड़दी कला और गुरू जी
के भरोसे की आस। भाई तोता जी, भाई निराला जी, भाई नन्ता जी, भाई त्रिलोका जी जुझते
हुये शहीद हो गये। दूसरी तरफ करीम बेग, जँग बेग, सलाम खान किले की दीवार गिराने में
सफल हो गये। दीवार गिरी देखकर गुरू जी ने बीबी वीरो के ससुराल सन्देश भेज दिया कि
बारात श्री अमृतसर की ब्जाय सीघी झबाल जाये। (बीबी वीरो जी गुरू जी की पुत्री थी,
उनका विवाह था, बारात आनी थी।) रात होने से लड़ाई रूक गयी, तो सिक्खों ने रातों-रात
दीवार बना ली। दिन होते ही फिर लड़ाई शुरू हो गयी। भाई तखतू जी ने इस लड़ाई में बहुत
ही बहादुरी के साथ हिस्सा लिया और शहीदी प्राप्त की। इनकी शहीदी के बारे में गुरू
बिलास पातशाही छेवीं में इस प्रकार से जिक्र आता हैः
निहालू तखतू ऐ बड सूरे।।
मोहन गुपाला प्रण के पूरे ।।
ऐ मम तेरह सूर अधारे ।।
मम निमित इह सुरग सिधारे ।।14।। (चेप्टर 11)