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23. भाई मांईंदास जी

भाई मांईंदास श्री गुरू अरजन देव जी के समय के प्रॅमुख सिक्खों में से एक थे। वह श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब जी के समय में उनके दर्शन करने और हरि जस सुनने के लिए श्री अमृतसर साहिब जी आते-जाते रहते थे। जब श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब जी ने फौज का गठन किया तो भाई मांईंदास ने भी इस फौज में भाग लेने के लिए प्रशिक्षण प्राप्त किया और फौज में भर्ती हो गए। जब मुगल फौजों ने श्री अमृतसर साहिब जी पर हमला किया तो भाई मांईंदास ने भी इस युद्ध में बढ़-चढ़कर भाग लिया और अपनी बहादुरी का प्रदर्शन किया। जिस समय श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब जी अपनी बेटी बीबी वीरो जी के विवाह की तैयारियों में व्यस्त थे। तभी कुलीटखान जो गर्वनर था, ने अपने फौजदार मुखलिस खान को 7 हजार की फौज के साथ, श्री अमृतसर पर धावा बोलने के लिए भेजा। शाही फौज श्री अमृतसर साहिब जी आ पहुँची। गुरू जी को इतनी जल्दी हमले की उम्मीद नहीं थी। जब लड़ाई गले तक आ पहुँची, तो गुरू जी ने लोहा लेने की ठान ली। पिप्पली साहिब में रहने वाले सिक्खों के साथ गुरू जी ने दुशमनों पर हमला कर दिया। शाही फौजों के पास काफी जँगी सामान था, पर सिक्खों के पास केवल चड़दी कला और गुरू जी के भरोसे की आस। भाई तोता जी, भाई निराला जी, भाई नन्ता जी, भाई त्रिलोका जी जुझते हुये शहीद हो गये। दूसरी तरफ करीम बेग, जँग बेग, सलाम खान किले की दीवार गिराने में सफल हो गये। दीवार गिरी देखकर गुरू जी ने बीबी वीरो के ससुराल सन्देश भेज दिया कि बारात अमृतसर की ब्जाय सीघी झबाल जाये। (बीबी वीरो जी गुरू जी की पुत्री थी, उनका विवाह था, बारात आनी थी।) रात होने से लड़ाई रूक गयी, तो सिक्खों ने रातों.रात दीवार बना ली। दिन होते ही फिर लड़ाई शुरू हो गयी। भाई मांईंदास ने भी अन्य 12 सिक्खों के साथ शहीदी प्राप्त की। इन 13 सिक्खों का जिक्र गुरू बिलास पातशाही छेवीं में किया गया है। भाई मांईंदास के बारे में गुरू बिलास पातशाही छेवीं में इस प्रकार से वर्णन किया गया हैः

मांई दास पैड़ा बली, भगतू सूर अपार ।।
अनंता बली अनंत था हमरो प्रेम पिआर ।।
ऐ मम तेरह सूर अपारो ।।
मम निमित इह सुरग सिधारो ।।14।।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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