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14. भाई पिराणा जी

भाई पिराणा जी श्री गुरू अरजन देव साहिब जी के समय सिक्ख धर्म में शामिल हुए थे। पिराणा पहले सखी सरवर को मानते थे और उन्होंने अपने घर में सरवर का स्थान बनाया हुआ था। भाई पिराणा और भाई मँझ जी दोनो इक्टठे श्री गुरू अरजन देव साहिब जी के पास आए थे और सिक्ख धर्म में शामिल होने की ख्वाहिश जाहिर की थी। गुरू साहिब जी ने कहा कि उन्हें सखी सरवर या सिक्खी में से एक को चूनना होगा। उन्होंने सिक्खी चूनी। भाई मँझ और भाई पिराणा जी ने सिक्ख पँथ की बड़ी सेवा की। सन 1606 में जब श्री गुरू अरजन देव साहिब जी गिरफ्तार होने के लिए लाहौर गए तो भाई पिराणा जी भी गुरू साहिब जी के साथ ही थे। जब छठवें गुरू साहिब श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब जी ने फौज बनाई तो भाई पिराणा जी और उनके इलाके के कई जोशीले नौजवान भी इस फौज में शामिल हुए। गुरू साहिब जी ने अपनी फौज को पाँच कमाण्डरों की अगुवाई में जत्थेबँद किया तो उन पाँच कमाण्डरों में से एक भाई पिराणा जी भी थे। जब गुरू साहिब जी ग्वालियर के किले में नजरबँद रहे तो भाई पिराणा जी साल में कम से कम दो बार गुरू साहिब जी से मिलने के लिए जाते रहे। गुरू साहिब जी जब ग्वालियर के किले से रिहा हुए तो भाई पिराणा जी गुरू साहिब जी के साथ हमेशा रहे। जब माता गँगा ने शरीर त्यागा तो उनकी उनकी अर्थी को कन्धा देने के लिए मुख्य सिंघों में से भाई पिराणा जी भी थे। श्री अमृतसर साहिब जी की लड़ाई में भाई पिराणा जी ने बहुत सारे मुगल सिपाहियों को मौत के घाट उतार दिया। उनके शरीर पर तलवारों से बहुत ज्यादा घाव आए थे। अंत में दुशमनों का सफाया करते हुए उन्होंने शहीदी जाम पिया।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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