13. भाई सिंघा पुरोहत
भाई सिंघा पुरोहत का नाम भी तवारीख की एक अहम घटना से जुड़ा हुआ है। जब श्री गुरू
हरगोबिन्द साहिब जी श्री अमृतसर साहिब जी में अपनी पुत्री बीबी वीरो जी के विवाह की
तैयारियों में व्यस्त थे, तभी मुगलों ने हमला कर दिया। खालसा ने भी मोर्चे सम्भाल
लिए। मुगलों ने शहर को कई तरफ से घेर लिया। गुरू जी के परिवार को झबाल गाँव में
पहुँचाने की तैयारियाँ होने लगीं। इसी भागमभाग में श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब जी की
पुत्री, जिसका कि विवाह था, वह अकेले एक कमरे में थी, जिसका किसी को ध्यान ही नहीं
रहा। जब सिक्खों को इस बात का पता लगा तो भाई सिंघा पुरोहत और भाई बाबक जी मुस्लमानी
रूप धारण करके वीवी वीरो जी को ढूँढकर सुरिक्षत लेकर आ गए। भाई सिंघा पुरोहत जी ने
बीबी वीरी जी को घोड़े पर बिठाया और दुश्मन की फौज का घेरा तोड़कर झबाल पहुँच गए। बीबी
वीरो जी को वहाँ पहुँचाने के बाद भाई सिंघा पुरोहत वापिस आकर लड़ाई में शामिल हो गए।
भाई सिंघा पुरोहत ने लड़ाई में कई मुगल सैनिकों को मार गिराया। सिक्खों और मुगलों
में हाथों-हाथ लड़ाई हुई। मुगलों की लाशों के ढेर लग गए। यह देखकर मुगल कमाण्डर ने
कई साथियों के साथ भाई सिंघा पुरोहत पर हमला बोल दिया। आखिर में भाई जी के साथ हुई
हाथों हाथ लड़ाई में सैयद और भाई सिंघा पुरोहत जी दोनों की मारे गए। इस प्रकार भाई
सिंघा पुरोहत ने शहीदी प्राप्त की। इस लड़ाई में शहीद हुए 13 सिक्खों का अंतिम
सँस्कार गुरू साहिब जी ने अपने हाथों से किया था। नोटः भाई सिंघा पुरोहत के सुपुत्र
भाई "जाती मलक" भी श्री "करतापुर साहिब जी" की लड़ाई में दिलों जान से लड़े थे। जब
गुरू साहिब जी करतापुर छोड़कर कीरतपुर साहिब चले गए तो भाई जाती मलक भी गुरू साहिब
जी के साथ वहीं चले गए। भाई जाती मलक जी ने श्री कीरतपुर साहिब जी में ही अपना शरीर
त्यागा। मरने से पहले उन्होंने अपने पुत्र भाई दया राम पुरोहत का हाथ गुरू साहिब को
थमा दिया। इसके बाद भाई दया राम पुरोहत श्री गुरू गोबिंद सिंघ साहिब जी का नजदीकी
साथी बना और आखिर तक गुरू जी की सेवा करता रहा।