12. भाई पैड़ा जी
भाई पैड़ा जी चंडालीया एक राजपूत वणजारे थे। वह श्री गुरू अरजन देव साहिब जी के समय
सिक्ख पँथ में शामिल हुए थे। जब श्री गुरू अरजन देव साहिब जी ने गुरू चक्क (श्री
अमृतसर साहिब जी) का निर्माण कार्य प्रारम्भ करवाया तो भाई पैड़ा जी ने बड़ी ही
श्रद्धा और भक्ति भाव के साथ इस सेवा में बड़-चड़कर भाग लिया। जब श्री गुरू अरजन देव
साहिब जी की गिरफ्तारी हुई तो भाई पैड़ा जी, गुरू साहिब जी के साथ ही थे। जब श्री
गुरू हरगोबिन्द साहिब जी ने फौज बनाई तो भाई पैड़ा जी भी इस फौज में शामिल हुए।
उन्होंने हर प्रकार के शस्त्र चलाने की शिक्षा हासिल की। भाई पैड़ा जी भी उन पाँच
कमाण्डरों में शामिल थे जो कि गुरू साहिब जी ने अपनी फौज का गठन करते समय चुने थे।
भाई पैड़ा जी, श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब जी के खास दरबारियों में से एक थे। गुरू
साहिब जी की माता गँगा जी के अंतिम सँस्कार के समय उनकी अर्थी को कन्धा देने वालों
में भाई पैड़ा जी भी शामिल थे। श्री अमृतसर साहिब जी की लड़ाई में भाई पैड़ा जी ने फौज
की अगुवाई की। जिस समय गुरू हरगोबिन्द साहिब जी अपनी बेटी बीबी वीरो जी के विवाह की
तैयारियों में व्यस्त थे। तभी कुलीटखान जो गर्वनर था, ने अपने फौजदार मुखलिस खान को
7 हजार की फौज के साथ, श्री अमृतसर पर धावा बोलने के लिए भेजा। शाही फौज श्री
अमृतसर साहिब जी आ पहुँची। गुरू जी को इतनी जल्दी हमले की उम्मीद नहीं थी। जब लड़ाई
गले तक आ पहुँची, तो गुरू जी ने लोहा लेने की ठान ली। पिप्पली साहिब में रहने वाले
सिक्खों के साथ गुरू जी ने दुशमनों पर हमला कर दिया। शाही फौजों के पास काफी जँगी
सामान था, पर सिक्खों के पास केवल चड़दी कला और गुरू जी के भरोसे की आस। भाई तोता
जी, भाई निराला जी, भाई नन्ता जी, भाई त्रिलोका जी जुझते हुये शहीद हो गये। दूसरी
तरफ करीम बेग, जँग बेग, सलाम खान किले की दीवार गिराने में सफल हो गये। दीवार गिरी
देखकर गुरू जी ने बीबी वीरो के ससुराल सन्देश भेज दिया कि बारात श्री अमृतसर की
ब्जाय सीघी झबाल जाये। (बीबी वीरो जी गुरू जी की पुत्री थी, उनका विवाह था, बारात
आनी थी।) रात होने से लड़ाई रूक गयी, तो सिक्खों ने रातों-रात दीवार बना ली। दिन होते
ही फिर लड़ाई शुरू हो गयी। अपनी बहादुरी के जौहर दिखाते हुए और कई मुगलों को मौत के
घाट उतारने के बाद भाई पैड़ा जी ने भी शहीदी प्राप्त की।