11. भाई अनंता जी
भाई अनंता जी भी श्री गुरू अरजन देव साहिब जी के प्रॅमुख सिक्खों में से एक थे। जब
श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब जी ने फौज बनाई तो उनकी इस फौज में भाई अनंता जी ने भी
भाग लिया और एक शूरवीर योद्धा बन गए। एक किस्से के अनुसार उन्होंने एक काँव (कौवे)
को शरारत से पत्थर मारा जिससे वह लँगड़ा हो गया। इस बात से श्री गुरू हरगोबिन्द
साहिब जी उनसे नाराज हो गए। भाई अनंता जी ने इस बात का अफसोस जाहिर किया और भाई
बिधीचंद द्वारा गुरू साहिब जी से माँगी मँगवाई और अपनी भूल क्षमा करवाई। जब मुगल
फौजों ने "श्री अमृतसर साहिब जी" पर हमला किया तो भाई अनंता जी ने भी इस युद्ध में
बढ़-चढ़कर भाग लिया और अपनी बहादुरी के हाथ दिखाए। जिस समय श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब
जी अपनी बेटी बीबी वीरो जी के विवाह की तैयारियों में व्यस्त थे। तभी कुलीटखान जो
गर्वनर था, ने अपने फौजदार मुखलिस खान को 7 हजार की फौज के साथ, श्री अमृतसर पर धावा
बोलने के लिए भेजा। शाही फौज श्री अमृतसर साहिब जी आ पहुँची। गुरू जी को इतनी जल्दी हमले की उम्मीद नहीं थी। जब लड़ाई गले तक आ पहुँची, तो गुरू जी ने लोहा लेने की ठान
ली। पिप्पली साहिब में रहने वाले सिक्खों के साथ गुरू जी ने दुशमनों पर हमला कर दिया।
शाही फौजों के पास काफी जँगी सामान था, पर सिक्खों के पास केवल चड़दी कला और गुरू जी
के भरोसे की आस। भाई तोता जी, भाई निराला जी, भाई नन्ता जी, भाई त्रिलोका जी जुझते
हुये शहीद हो गये। दूसरी तरफ करीम बेग, जँग बेग, सलाम खान किले की दीवार गिराने में
सफल हो गये। दीवार गिरी देखकर गुरू जी ने बीबी वीरो के ससुराल सन्देश भेज दिया कि
बारात अमृतसर की ब्जाय सीघी झबाल जाये। (बीबी वीरो जी गुरू जी की पुत्री थी, उनका
विवाह था, बारात आनी थी।) रात होने से लड़ाई रूक गयी, तो सिक्खों ने रातों.रात दीवार
बना ली। दिन होते ही फिर लड़ाई शुरू हो गयी। भाई अनंता जी मुगल फौजों के खिलाफ डटकर
लड़े और उन्होंने कई मुगल सिपाहियों को मौत के घाट उतारकर शहीदी प्राप्त की और इस
युद्ध के 13 शहीदों में स्थान प्राप्त किया और गुरू साहिब जी के हाथों से अंतिम
सँस्कार का मान हासिल किया। गुरू बिलास पातशाही छेवीं में भाई अनंता जी के बारे में
इस प्रकार से जिक्र आता हैः
अनंता बली अनंत था हमरो प्रेम पिआर ।।13।। (चेप्टर 11)
नोटः श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब जी के खास सिक्खों में
शामिल भाई अनंता जी (पुत्र भाई कुको वधावन) और भी हुए हैं। जो कि गुरू साहिब के पास
कीरतपुर साहिब जी आते रहते थे। हो सकता है कि काँव (कौवे) को पत्थर मारने वाली कहानी
भाई अनंता जी वधावन के साथ संबंध रखती हो।