10. भाई नानू
सिक्ख कौम के शहीदों में भाई नानू जी का जिक्र सुनहरी अक्षरों में लिखा मिलता है।
भाई नानू जी रूहीला (अब गोबिन्दपुर) की लड़ाई में जुझते हुए शहीद हुए। इस लड़ाई में
उन्होंने सिक्ख तवारीख में बदनाम दुष्ट चन्दू के पुत्र करम चन्द को आमने-सामने की
लड़ाई में मारा था। इस लड़ाई में चन्दू के एक रिश्तेदार काने का पुत्र भगवान दास घोहड़
और उसका पुत्र रतन चन्द भी आपके हाथों मारा गया था। भाई नानू, भाई मूला के पुत्र,
भाई राओ के पोतरे और भाई चाहड़ के पड़पौते थे। आप परमार राजपूत खानदान से संबंध रखते
थे। रूहीला की लड़ाई के समय आपका परिवार अलापुर (जिला मुजफरगढ़ पाकिस्तान) में रह रहा
था। भाई नानू भाई मनी सिंह के दादे भाई बलू के छोटे भाई थे। (भाई बलू भी अमृतसर की
लड़ाई में शहीद हुए थे।) भाई जी श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब के समय के प्रमुख सिक्खों
में से एक थे। वो गुरू के चक्क (श्री अमृतसर साहिब जी) में अक्सर आते रहते थे। जब
श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब ने फौज बनाई तो आप अपने कई साथियों और रिश्तेदारों के
साथ इसमें शामिल हुए। भाई नानू एक बहादुर और जुझारू थे। जब श्री गुरू हरगोबिन्द
साहिब जी रूहीला की खोह पर श्री गुरू अरजन साहिब द्वारा बसाये नगर गोबिन्दपुर में
दीवान सजा रहे थे तो भगवाना घोहड़ और चन्दू के पुत्र करम चन्द ने गुरू साहिब पर हमला
कर दिया। इस लड़ाई में औरों के साथ-साथ भाई नानू जी सबसे आगे होकर लड़े। इस हाथो-हाथ
लड़ाई में भगवाना घोहड़ मारा गया और इसका पुत्र रतन चन्द जख्मी हो गया। छैवें दिन रतन
चन्द और चन्दू के पुत्र करम चन्द ने जालँधर से मुगल फौजों को साथ लिया और एक बार
फिर गुरू साहिब जी पर हमला कर दिया। तारीख बताती है कि इस लड़ाई में भाई नानू ने
हमलावरों के खूब छक्के छुड़ाए। हमलावर फौजों के दोनों आगू रतन चन्द और करम चन्द आप
ही की तलवार का शिकार हूए। कई घंटों की इस लड़ाई में आप ने कईयों के सिर उतार दिये
और आखिर में आप भी शहीद हो गये।