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1. भाई जेठा जी

शहीद भाई जेठा जी का जन्म 11 जेठ संमत् 1611 ईस्वी 1554 को गाँव सिघवाँ में हुआ था। पिता का नाम भाई मांढ और माता का नाम बीबी करमी जी था। भाई जेठा जी को चौथे गुरू रामदास, पांचवें गुरू अरजन देव के साथ सेवा करने का और छठवें गुरू हरगोबिन्द जी का सैनापति बनकर जबर के खिलाफ जालिम का खात्मा करने का मान प्राप्त है। सन् 1577 में सरोवर की सेवा, 1588 में हरिमन्दिर साहिब की सेवा से लेकर 1606 तक श्री अमृतसर में रहकर 29 साल भाई जेठा जी ने सेवा की। 22 मई 1606 को जब गुरू अरजन देव जी शहीदी देने के लिए लाहौर गये, तब भाई जेठा जी भी साथ गये थे। उस समय गुरू अरजन देव की पर जो जुल्म किया गया था, उसका सारा वार्तालाप भाई जेठा जी और अन्य सिक्खों ने गुरू हरगोबिन्द साहिब जी को श्री अमृतसर पहुँचकर बताया। उसके बाद गुरू हरगोबिन्द साहिब जी ने जबर का खात्मा करने के लिए हाड़ 1606 को फौज का गठन किया, जिसमें 5 सैनापति बनाये गये, जिसमें से एक सैनापति भाई जेठा जी भी थे। फौज के गठन के बाद जहाँगीर बादशाह ने गुरू जी को बुलाया। भाई जेठा जी साथ ही गये थे। जहाँगीर ने गुरू जी को ग्वालियर के किले में नजरबंद कर दिया। गुरू जी ने सरकारी भोजन खाने से इन्कार कर दिया, तब भाई जेठा जी और अन्य सिक्ख मेहनत करके पैसे इक्टठे करते थे और गुरू जी को किरत कमाई का भोजन देते थे। बाबा बुड्डा जी ने ग्वालियर पहुँचकर गुरू जी की आजादी के लिए भाई जेठा जी को दिल्ली भेजा। भाई जेठा जी शेर के रूप में भयानक दृष्य और सपने दिखाने में कामयाब हुये, इसके बाद जहाँगीर को गुरू जी को आजाद करना पड़ा। जहाँगीर ने चन्दू को गुरू जी के हवाले कर दिया। भाई बिधीचंद और भाई जेठा जी ने चन्दू की नाक में नकेल डालकर गली-गली घुमाया था। जब भाई गुरदास जी गुरू जी से नाराज होकर बनारस चले गये, तब भाई जेठा जी ही बनारस से भाई गुरदास जी को लेकर आये थे। मुगलों के खिलाफ पहली जँग श्री अमृतसर साहिब में लड़ी गयी थी। भाई जेठा जी ने पहली और दुसरी जँग में अपनी शुरवीरता के जौहर दिखाये थे। गुरू जी ने तीसरी जँग लहिरा महिराज की धरती पर लड़ी। लड़ाई के मैदान में करम बेग और समश बेग ने मारे जाने के बाद कासिम बेग मैदान में आया। गुरू जी ने भाई जेठा जी को पाँच सौ सिंघों का जत्था देकर कासिम बेग का मुकाबला करने के लिए भेज दिया। भाई जेठा जी की उम्र 77 साल की थी। कासिम बेग ने कहा कि ओ बुर्जग, तूँ छोटी सी फौज के साथ अपने आप को नष्ट करने के लिए क्यों आ गया। है, जा इस दुनियाँ में कुछ दिन मौज करे ले। भाई जेठा जी ने उत्तर दिया कि मैंने तो जीवन भोग लिया है, पर तूँ अभी छोटा है, तूँ जाकर दुनियाँ का रौनक मैला देख। लड़ाई शुरू हो गयी। भाई जेठा जी ने तीर मारकर, कासिम बेग के घोड़े को मार दिया। कासिम बेग को जोर से पकड़कर उसका सिर जमीन पर दे मारा। कासिम बेग तुरन्त मर गया। सैनापति लला बेग अपनी बची हुई सैना लेकर आगे आया। भाई जेठा द्वारा बरबादी की जाती देखकर लला बेग आगे आया। लला बेग ने बरछे का वार किया, जिसे भाई जेठा जी ने बचा लिया। इस पर लला बेग न अपनी तलवार खींच ली और भाई जेठा जी ने पहला वार झेल लिया। अगली बार लला बेग कामयाब रहा, क्योंकि उसने अपने बहादुर विरोधी के दो टुकड़े कर दिये थे। भाई जेठा जी वाहिगुरू वाहिगुरू करते हुये शहीदी प्राप्त कर गये। गुरू हरगोबिन्द साहिब जी लड़ाई के मैदान में घोड़े पर सवार होकर पहुँच गये। गुरू जी ने निशाना मारकर लला बेग के घोड़े को गिरा दिया। लला बेग ने गुरू जी पर तलवार से कई वार किये, जो गुरू जी ने बचा लिये। गुरू जी ने पूरी ताकत से लला बेग पर ऐसा वार किया, जिससे उसका सिर धड़ से अलग हो गया। लड़ाई के मैदान को गुरू जी ने एक यात्रा का स्थान बना दिया, अब इसे गुरूसर या गुरू जी का सरोवर कहा जाता है। यह लखाणा गाँव के पास रामपुर फुल रेलवे स्टेशन लगभग 3 किलोमीटर की दूरी पर है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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