7. सिक्खों द्वारा किले का निर्माण
नादिरशाह के आक्रमण के कारण फैली बेचैनी से लाभ उठाने के लिए दल खालसा के नायक नवाब
कपूर सिंघ जी ने सिक्खों के लिए किसी सुरक्षित स्थान की कल्पना की। जब उनके हाथ
नादिर की लूट का माल लगा तो उन्होंने उसे सुरक्षित करने के लिए उस कल्पना को साकार
रूप दे दिया। उनके निर्देश अनुसार डल्लेवाल नामक स्थान पर एक किले का निर्माण किया
गया। यह स्थान श्री अमृतसर साहिब जी की उत्तर-पश्चिम दिशा में रावी नदी के तट पर
स्थित है और इसके ईद-गिर्द घने जँगल थे। इस स्थल के चुनाव में बड़ी गहरी कूटनीति छिपी
हुई थी। एक तो वहाँ से सिक्खों के पवित्र तीर्थ की रक्षा की जा सकती थी, दूसरे
आवश्यकता पड़ने पर सिक्ख सैनिक वहाँ पर आश्रय भी ले सकते थे। मुगल सरकार के जासूस भी
इस रहस्य से भली भान्ति परिचित थे। भले ही मुगल किलों की तुलना में सिक्खों का यह
किला एक तुच्छ सा स्थान था, तथापि यह इस बात का सूचक था कि अपनी राजनैतिक सत्ता
स्थापित करने के लिए सिक्ख दूरदृष्टि रखते हैं और आने वाली कठिनाइयों के लिए सजग
थे। जैसे ही नादिरशाह ने जक्रिया खान को सिक्खों के विरूद्ध भड़काया कि वह तेरी सत्ता
हड़प सकते हैं, बस फिर क्या था, वह अपनी सम्पूर्ण शक्ति से सिक्खों को उखाड़कर पँजाब
से बाहर करने में लग गया। जैसे ही उसे डल्लेवाल के किले के निर्माण की सूचना मिली,
उसने उस पर आक्रमण कर दिया परन्तु वह तो अभी निर्माणाधीन ही था, सिक्ख उसका प्रयोग
कर ही नहीं सकते थे। अतः उस क्षेत्र को विराना छोड़कर सिक्ख फिर से अन्य शरण स्थलों
में चले गए। जिससे जक्रिया खान ने अधूरे किले को फिर से मिट्टी में मिला दिया।