1. नवाब कपूर सिंघ जी का व्यक्तित्त्व
सरदार कपूर सिंघ जी का जन्म सन् 1697 ईस्वी को चौधरी दलीप सिंह जी के घर, ग्राम कालो
के,परगना शेखूपुरा में हुआ। चौधरी दलीप सिंह, सिक्ख धर्म के प्रति अटूट आस्था रखते
थे। अतः उन्होंने अपने प्रिय पुत्र का पालन पोषण गुरू मर्यादा अनुसार किया। उन दिनों
बंदा सिंह बहादुर की विजयों की घर-घर चर्चा होती थी। अतः आप बाल्याकाल में ही सैनिक
रूचियाँ रखने लगे। आप प्रायः किशोरों की टोलियां बनाकर युद्ध लड़ने के खेल खेला करते
थे। जब आप युवावस्था में आए तो आपके माता-पिता ग्राम फैजलपुर में आ बसे। यह नगर
अब्दुलसमद खान के दामाद के नियन्त्रण में था। उसने सिक्खों से द्वेष के कारण अनेकों
निर्दोष सिक्खों को मृत्युदण्ड दे दिया। कपूर सिंह किसी विधि द्वारा समय रहते वहाँ
से कुछ युवकों के साथ अमृतसर पहुँचने में सफल हो गए। उन दिनों अमृतसर में तत्व खालसा
व तथाकथित बन्दई खालसा का आपसी मतभेद भाई मनी सिंह जी ने सुलझाया था। वहाँ उन दिनों
खालसे की फिर से चढ़दी कला देखने में आ रही थी। अतः कपूर सिंह जी ने गुरूमति की
शिक्षा ग्रहण करके कुछ अन्य उत्साहित युवकों के साथ अमृतधारण कर लिया और गुरदीक्षा
लेकर पँथ के हितों की रक्षा हेतु जूझ मरने की शपथ ली। आप कभी समय नष्ट नहीं करते
थे, सदैव लँगर इत्यादि के कार्यों में समर्पित भाव से सेवा में सँलग्न रहते थे। आप
मधुरभाषी थे। आपकी निष्काम सेवा से सभी प्रसन्न थे। अतः आप लोकप्रिय बनते ही चले गए।
आप कोई भी श्वास व्यर्थ न जाने देते, सदैव चिंतन-मनन में ही कार्यरत रहते, इसलिए
आपके मुखमण्डल पर एक तेजोमय आभा बनी रहती। आप धर्मवान, अभय तथा दूरदृष्टिवान थे। आप
समय रहते उचित निर्णय लेने की क्षमता रखते थे। आपके नेतृत्त्व में खालसा पँथ में
एकता बनी रही और लगभग 20 वर्षों तक आपने पँथ का विषम/विकट परिस्थितियों में
मार्गदर्शन किया। आप शारीरिक दृष्टि से ऊँचे कठ वाले, चौड़ी छाती, सुडौल गठ्ठा हुआ
बदन और चेहरा तेजोमय, कुल मिलाकर बहुमुखी प्रतिभावान व्यक्तित्त्व के स्वामी थे।