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2. नादिर शाह दुरानी और सिक्ख-2

दल खालसा के नायक नवाब कपूर सिंघ जी ने गुरमता गुरू आशय अनुसार सँयुक्त विद्येयक प्रस्तुत किया जो सभी सरदारों ने जयकारों की गूँज में पारित कर दिया। इस पर नादिर को सबक सिखाने की योजनाएँ बनाई जाने लगी। लाहौर से दिल्ली तक की शाही सड़क परशियन सेना ने बर्बाद कर दी थी। अतः उन्होंने लौटते समय गर्मी से बचने के लिए पर्वतों की तलहटी से अखनूर-स्यालकोट का मार्ग चुना। दिल्ली से चनाब नदी के तट तक किसी ने भी नादिर की सेना की ओर आँख भी उठाकर नहीं देखा। जब नादिर चनाब पार करने लगा तो उसमें बाढ़ आई हुई थी, अकस्मात् सेना के नदी पार करते समय पुल टूट गया, जिससे नादिर के दो हजार सैनिक नदी में डूबकर मर गए। जिस कारण नादिर ने नदी किश्तियों द्वारा धीरे-धीरे पार करने की योजना बनाई। इन सब परिस्थितियों का लाभ उठाते हुए सिक्खों ने अपनी बनाई हुई योजना अनुसार धावा बोल दिया। उस समय नादिरशाह की सेना दो भागों में बँट चुकी थी। कुछ नदी पार कर चुके थे और कुछ धीरे-धीरे नदी पार करने का प्रयास कर रहे थे। यही उपयुक्त समय था। जब नादिरशाह के लूट के माल को लूटा जा सकता था। सिक्खों को नादिर के पूरे काफिले की ठीक-ठीक जानकारी प्राप्त हो चुकी थी। अतः उन्होंने अपनी अजमाई हुई चाल द्वारा काम प्रारम्भ कर दिया। पहले उनका एक दल नादिर के काफिले पर टूट पड़ता जब वे सिक्खों के मुकाबले के लिए आते तो सिक्ख भाग जाते, शत्रु उनका पीछा करता, जब शत्रु उनके क्षेत्र में पहुँच जाता तो वे अकस्मात वापिस लौटकर पुनः आक्रमण कर देते और शत्रु को वहीं उलझाए रखते, साथ ही शत्रु को झाँसे में लाकर घेर लेते और वहीं पर ढ़ेर कर देते। दूसरी ओर शत्रु के काफिले पर दूसरा सिक्खों का दल आक्रमण कर देता, वहाँ से लड़ाके सैनिक तो पहले वाले सिक्खों के दल का पीछा करने गए हुए होते, जिस कारण इन सिक्खों के दल को, काफिले को लूटने में कोई परेशानी का सामना नहीं करना पड़ता। रिक्त स्थान पाकर सिक्खों का दूसरा दल अपने लक्ष्य में पूरी तरह सफल हो जाता। इस प्रकार सिक्खों ने नादिरशाह की लूटी हुई सम्पत्ति में से बहुत बड़ी धनराशि लूट ली और दूर जँगलों में छिपा दी अथवा गरीबों और जरूरतमँदों में बाँट दी। सिक्खों की सफलता को देखते हुए कई स्थानिक लूटरे भी सिक्खों के साथ मिल गए, जिससे सिक्खों की शक्ति बढ़ती ही चली गई। नादिरशाह के लम्बे काफिले के दोनों ओर सिक्ख थोड़ी दूरी बनाकर चल रहे थे, जैसे ही उनको कहीं काफिले की कमजोरी का पता चलता, उस समय वे अपनी निश्चित विधि अनुसार कार्य कर देते। इस अभियान में जस्सा सिंह आहलूवालिया को वे समस्त अबला महिलाएँ छुड़वाने का कार्यभार सौंपा गया था, जो बलपूर्वक नादिरशाह की सेना ने उनके परिवारों से छीन ली थी, इन सब अति सुन्दर महिलाओं को उसने अपनी रणनीति से सफलतापूर्वक छुड़वाकर दिखाया। इन महिलाओं की संख्या 2200 थी। इन महिलाओं के साथ बलात्कार, अत्याचार व दुव्यर्वहार किये गए थे। महिलाओं द्वारा प्रभु का तथा जस्सा सिंघ का धन्यवाद किया गया। इन सभी महिलाओं को उनके घरों को वापिस भेजने का कार्यक्रम बनाया। कपूर सिंह जी ने अपनी देखरेख में यह कर्य प्रारम्भ करवाया। नादिरशाह से लूटे हुए गहने और रूपये इन स्त्रियों में दहेज के रूप में बाँट दिए गए और एक पिता के रूप में सरदार कपूर सिंह जी ने उनको विदाई दी और उनके वीर-यौद्धा सिंघ भाइयों को उनके घर सुरक्षित पहुँचाने का आदेश दिया। परन्तु कुछ महिलाएँ वापस जाना नहीं चाहती थी क्योंकि उनको भय था कि अब उनको उनके माता पिता अथवा ससुराल वाले स्वीकार नहीं करेंगे। इन महिलाओं का भय उचित ही था, अधिकाँश महिलाओं को वापिस स्वीकार नहीं किया गया। उनके ससुराल अथवा माता पिता इत्यादि का कहना था कि यह अब पतित हो गई हैं, क्योंकि इन्होंने सतीत्त्व खो दिया है, इसलिए हम इन्हें स्वीकार नहीं कर सकते। ऐसे में इन महिलाओं ने लौटकर नवाब कपूर सिंघ जी से आग्रह किया कि वह उन्हें पँथ की सेवा में रख लें अथवा अपने योद्धाओं से उनका विवाह रचा दें, क्योंकि हम उन्हीं की सेवा में रहना पसन्द करेंगी। जिन्होंने अपनी जान हथेली पर रखकर हमें दुष्टों के चँगुल से मुक्त करवाया है। इस प्रकार इस विपत्तिकाल में सिक्ख लोग पीड़ित वर्ग के लिए मसीहे बनकर उभरे, जिससे जनसाधारण की दृष्टि में सिंघ देवरूप होकर प्रकट हुए। इस विजय से जहाँ सिक्खों ने नादिर की सेना के दाँत खट्टे किए, वहीं उनका अपना मनोबल बहुत बढ़ गया। परन्तु कमज़ोर लाहौर की मुगल सरकार फिर से उन्हें अपने लिए उभरता हुआ खतरा समझने लगी। नादिरशाह की लूट के माल को सिक्खों ने पुनः लूट लिया तो उनकी आर्थिक दशा बहुत सुदृढ़ हो गई। साथ ही उनको बहुत बड़ी मात्रा में रण सामग्री हाथ लगी। कई साहसी युवकों ने सिक्खों की वीरता के किस्से सुनकर अपने स्वाभिमान की रक्षा हेतु सिक्ख बनने का मन बना लिया और वे सिक्ख जत्थे की खोज में निकल पड़े। इस प्रकार सिक्खों की नई भर्ती बहुत ही सहज में मिलने लगी और उनकी सँख्या लगातार बढ़ने लगी। नादिरशाह को गर्व था कि वह उस समय का महान विजेता है परन्तु उसकी सेना के काफिले को जब रास्ते भर सिक्खों ने बार-बार छापामार युद्ध से लूटा तो वह बेबस होकर यह सब देखता रह गया और कुछ न कर सका। इस प्रकार उसकी अकड़ चकनाचूर हो गई। जब वह लाहौर पहुँचा। तो उसने स्थानीय राज्यपाल जक्रिया खान से पूछा– लम्बे लम्बे केशों वाले यह लोग कौन हैं, जिन्हें मेरा भय ही नहीं था और यह लोग कहाँ रहते हैं ? इनके बारे में मुझे पूरी जानकारी दो ताकि मैं इनको सदा के लिए समाप्त कर सकूँ। उत्तर में जक्रिया खान ने ने बहुत दुखी मन से कहा कि– हजूर ! यह सिक्ख लोग हैं, जो घोड़ों की पीठ पर ही रहते हैं, इनका पक्का कोई ठिकाना नहीं है। हमने इन्हें कई बार मारने/समाप्त करने का अभियान चलाया, परन्तु हम लोग असफल ही रहे। हमने जितना इनको कुचला, ये लोग उतनी ही गति से बढ़ते ही गए और अधिक शक्तिशाली बनकर उभरे हैं। जक्रिया खान का यह उत्तर सुनकर नादिरशाह ने कहा– यह कैसे सम्भव है कि जिनका घरबार नहीं, हकूमत ने जिन्हें बागी ऐलनिया बशर विद्रोही घोषित किया हो, वे लोग किस प्रकार फल-फूल सकते हैं ? मुझे इनके विषय में विस्तार से बताओ। फिर जक्रिया खान ने उसे समझाते हुए कहा कि– ये हिन्दू और मुसलमानों से अलग किस्म का जीवन जीने वाले लोग हैं। इनका मुर्शद (गुरू) बहुत बड़ा पैगम्बर कहलाता है, जो इनको कुछ न्यारे सिद्धाँतों से जीना सिखा गया है। ये लोग बहुत स्वाभिमानी हैं, किसी की परतन्त्रता स्वीकार नहीं करते। इनकी वेशभूषा हैः सिर पर पगड़ी, गले में कुर्त्ता, तेड़ कन्धै और बगल में तलवार अथवा अन्य शस्त्र होता है। इनके पास एक घोड़ा, एक कम्बल तथा एक पोटली जिसमें कुछ अन्य जरूरत की वस्तुएँ होती हैँ यह लोग कँदमूल का आहार करके सन्तुष्ट रहते हैं। यह कठिन परिस्थितियों में रहने के अभ्यस्त हैं। बिना आराम किए एक ही दिन में सैंकड़ों कोस सफर कर सकते हैं। यह बुतप्रसत (मूर्ति पूजक) नहीं हैं, यह अपने मुर्शद का कलमा (गुरू की बाणी) हर समय पढ़ते रहते हैं। किसी हानि-लाभ का विचार नहीं करते, सभी कार्य अपने गुरू के लक्ष्य को सम्मुख रखकर उनको समर्पित होकर करते हैं। यह आपस में बाँटकर खाते हैं और बिना भेदभाव मज़लूमों कमज़ोर वर्ग अथवा गरीबों की सहायता करते हैं। इसलिए जनता भी इनका पक्ष लेती है, सत्ताधरियों का नहीं। असल में ये फकीरों का टोला था, परन्तु इनके दसवें मुर्शद (गुरू) ने इन्हें स्वाभिमान से जीना सिखा दिया है, इसलिए ये हर समय लड़ने-मरने के लिए तत्पर रहते हैं। उपरोक्त जानकारियों को प्राप्त करके नादिरशाह बहुत आश्चर्यचकित हो गया। और बहुत विचार करके बोला– यदि तुम्हारी बातों में "सच्चाई" है तो वह दिन दूर नहीं, जब ये लोग इस मुल्क देश के स्वामी बनेंगे, इसलिए तुम सत्तर्क हो जाओ, तुम्हारी सत्ता को हमेशा खतरा ही खतरा है।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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