1. नादिर शाह दुरानी और सिक्ख-1
नादिरशाह दुरानी का भारत पर आक्रमण
जब दिल्ली के तख्त पर मुहम्मदशाह रँगीला बैठा, तब दिल्ली प्रशासन की पकड़ प्रान्तों
के सत्ताधारियों पर और भी ढ़ीली पड़ती चली गई। मुहम्मद शाह एक अईयाश, कमजोर, शराबी
प्रवृत्ति का व्यक्ति था। उसके इस व्यवहार को देखकर जहाँ पँजाब में सिक्खों ने,
राजपूताने में राजपूतों ने तथा दक्षिण भारत में मराठों ने अपनी स्थिति को बहुत
मजबूत कर लिया। वहीं ईरान के सम्राट नादिरशाह ने भी हिन्दुस्तान को विजय करने के
लिए आक्रमण कर दिया। ईरान और अफगानिस्तान का सम्राट नादिरशाह बहुत शक्तिमान परन्तु
लोभी प्रवृत्ति का व्यक्ति था। सन् 1730 ईस्वी में उसने अब्दाली कबीले को पराजित
करके काबुल और कँधार पर नियन्त्रण कर लिया और सन् 1736 तक सम्पूर्ण अफगानिस्तान को
अपने अधिकार में कर लिया। जब उसे कमजोर और अईयाशी दिल्ली के बादशाह के बारे में पता
चला तो उसने समस्त रहस्यों को जानने के लिए अपना एक दूत दिल्ली भेजा। परन्तु
मुहम्मद शाह रँगीला ने ऐश्वर्य के नशे में उसके साथ कोई उचित व्यवहार नहीं किया। अतः
उसने जनवरी, 1739 को भारत पर आक्रमण कर दिया। रास्ते में उसे पँजाब प्रान्त के
जक्रिया खान को आ दबोचा। इसने बिना सामना किए ही पराजय स्वीकार कर ली। वास्तव में
इसे सिक्खों के गौरिला युद्धों ने खोखला कर दिया था। जक्रिया खान ने 20 लाख रूपये
नज़राना भेंट करके नादिरशाह से संधि कर ली। इस पर नादिर शाह ने प्रसन्न होकर जक्रिया
खान को पुनः अपने साम्राज्य की ओर से राज्यपाल नियुक्त कर दिया। लाहौर नगर से नादिर
शाह अपनी सेना लेकर दिल्ली की ओर बढ़ा, किन्तु उसका सामना करनाल क्षेत्र में मुगल
सेना से हो गया। मुगल सेना की सँख्या उस समय लगभग 75000 थी। ऐश्वर्य का जीवन जीने
वाले मुगल सैनिकों के मन में ना तो मनोबल ही था ना ही कोई उचित योजना थी, इसलिए वह
बहुत जल्दी ही पराजित हो गई और उनके हजारों सैनिक मारे गए। इस प्रकार वह विजय के
डंके बजाता हुआ करनाल, थानेसर (थानेश्वर), पानीपत तथा सोनीपत में लूटमार करने लगा।
मुहम्मदशाह रँगीला ने अपनी ओर से नज़ाम को नादिरशाह से संधि करने के लिए भेजा।
नादिरशाह ने अपने शिविर में एक मसौदा तैयार करवाया और उस पर दोनों पक्षों में सहमति
हो गई, जिसके अनुसार दिल्ली सरकार को 50 लाख रूपये तुरन्त नादिरशाह को देने थे और
उसके बाद परशियन सेना को वापिस लाहौर लौटने पर 10 लाख रूपये और उसके पश्चात् 10 लाख
रूपये काबुल पहुँचने पर अदा करने होंगे। जब मुहम्मद शाह वापस लौट गया तो नादिर शाह
को स्यादत खान ने भड़का दिया और कहा 50 लाख का हरजाना तो बहुत तुच्छ सी राशि है। यदि
वह दिल्ली पर आक्रमण करता तो उसे 20 करोड़ की धनराशि हाथ लगनी थी। यह विचार सुनकर
नादिरशाह लोभ में आ गया, उसने पहले से की गई संधि को ठुकराते हुए बादशाह के दूत के
समक्ष नई शर्तें रख दीं। इन नई शर्तों के अनुसार 20 करोड़ की राशि तथा 20 हजार सैनिक,
परशियन सेना की सहायता के लिए माँगे। जब पुनः मुहम्मदशाह, नादिर शाह से मिलने आया
तो उसे उसके मँत्रियों सहित बन्दी बना लिया गया। जैसे ही यह सूचना दिल्ली पहुँची,
वहाँ बचे हुए बाकी शाही अमीर तथा अधिकारी दिल्ली छोड़कर भागे गए।
इस प्रकार मुहम्मदशाह को बदलती हुई परिस्थितियों से विवशता में
समझौता करना ही पड़ा। दिल्ली पहुँचकर उसने नादिरशाह का भव्य स्वागत किया और उसके आगे
अपनी समस्त दौलत रख दी, 10 मार्च तक सब कुशलमँगल दिखाई दे रहा था परन्तु ईद वाले
दिन शाही मस्ज़िद में नादिरशाह के नाम का खुतबा धन्यवाद प्रस्ताव पढ़ा गया। दिल्ली
सरकार नादिरशाह से इतनी अधिक भयभीत हो गई थी कि उसने व्यापारियों को आदेश दिया कि
नादिरशाह के सैनिकों को उचित मूल्य पर खाद्यान्न उपलब्ध करवाए जाएँ। इस आदेश से
दिल्ली निवासी बहुत परेशान थे। विशेषकर वे व्यापारी बहुत दुखी थे, जो अनाज का धँधा
करते थे। उनको अनाज की कम दर मिलने के कारण भारी क्षति उठानी पड़ रही थी। परशियन
सैनिकों से इसी बात पर तूँ-तूँ, मैं-मैं में भारी झगड़ा हो गया। इस झगड़े में बहुत से
परशियन सैनिक मारे गए। इस बीच क्रोध में किसी ने अफ्रवाह फैला दी कि नादिरशाह भी
मारा जा चुका है। जब यह घटना नादिरशाह को मालूम हुई तो उसने क्रोध के मारे सुनिहरी
मस्ज़िद में बैठे-बैठे ही आदेश दे दिया कि समस्त दिल्ली वासियों की हत्या कर दो। इस
प्रकार नादिर की सेना दिल्ली की जनता का कत्ल करने में जुट गई। लगभग 20 हजार लोग
मौत के घाट उतार दिए गए, दिल्ली के बाजार और गलियाँ शवों से भर गईं। बादशाह
मुहम्मदशाह रँगीला इतना रक्तपात देखकर नादिरशाह के कदमों में गिर पड़ा और विनती करने
लगा कि खुदा के वास्ते कत्लेआम बँद करवाओ, तब कहीं जाकर नादिर का क्रोध शान्त हुआ
और उसने खूनखराबा बँद करने का आदेश दिया। तब तक दिल्ली की बहुत सी इमारतें अग्नि की
भेंट हो चुकी थी। बादशाह ने अपने सभी अमीरों, मँत्रियों तथा धनाढ़य व्यक्तियों से कहा
कि वे अपनी सारी सम्पत्ति नादिर को प्रसन्न करने के लिए उसे भेंट कर दें क्योंकि
वातावरण पुनः सामान्य हो गया है। इस प्रकार करोड़ो रूपये नकद, हीरे जवाहरात, तख्त
हाऊस और कोहिनूर हीरा भी नादिरशाह ने अपने कब्जे में कर लिया। जब नादिरशाह ने दिल्ली
सरकार को कँगाल कर दिया तो उसने मुहम्मदशाह के साथ एक विशेष संधि के अन्तर्गत सिंधु
नदी के उत्तर पश्चिम के क्षेत्र अपने साम्राज्य में मिलाने के दस्तावेजों पर
हस्ताक्षर करवा लिए। इस प्रकार सिंध, बलूचिस्तान तथा सीमावर्ती क्षेत्र भारत से कट
कर रह गए। पहली मई, 1739 ईस्वी को नादिरशाह पाँच महीने दिल्ली में रहने के पश्चात्
अपने वतन लौटने के लिए चल पड़ा। उन दिनों गर्मी बढ़ने लगी थी। नादिरशाह चाहता था कि
वह जल्दी से जल्दी समस्त धन-दौलत के साथ सुरक्षित वापिस स्वदेश पहुँच जाए। जब इन सभी
परिस्थितियों के विषय में सिक्खों को मालूम हुआ तो वह श्री अमृतसर साहिब जी में
एकत्रित हुए और उन्होंने आपस में परामर्श किया कि धन तो सभी लूटेरे ले जाते हैं,
उसकी तो कोई बात नहीं, बात तो स्वाभिमान की है, वह लूटेरा नादिरशाह हमारे देश की
इज्जत अर्थात हमारी बहू-बेटियों को भेड़ बकरियों की तरह अफगानिस्तान ले जा रहा है।
यह बात सुनते ही सभी जवानों का खून खौलने लगा और सभी ने तुरन्त शपथ ली कि हम नादिर
के चँगुल से अपना बलिदान देकर इन अबला नारियों को अवश्य ही छुड़वाएँगे।