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6. सम्राट को राजकीय ज्योतिषि द्वारा ग्रहों का प्रकोप बताना

श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब जी के सम्राट के साथ मधुर संबंधों को देखकर चन्दूशाह को बहुत चिन्ता हुई। वह अपना रचा हुआ षडयन्त्र विफल होता देख, भयभीत होने लगा। वह तो गुरू जी का अनिष्ट करवाना चाहता था किन्तु हुआ उसकी विचारधारा के विपरीत। अब वह नई चाल चलने के प्रयास में लग गया। उसने राजकीय ज्योतिषी को अपने विश्वास में लिया और उसे 5000 रूपये देने निश्चित किये, जिसके अर्न्तगत वह सम्राट को भ्रम में डालेगा कि उस पर भारी विपत्ति आने वाली है क्योंकि उसक पक्ष में ग्रह नक्षत्र और इस सँकट को टालने का एक ही उपाय है कि कोई महान विभूति उसके पक्ष में 40 दिन अखण्ड जप करे। वास्तव में जहाँगीर हिन्दु सँस्कारों में पला हुआ व्यक्ति था, उसकी किशोर अवस्था राजस्थान कि राजपूत घरानों (ननिहाल) में व्यतीत हुई थी। अतः वह पंडितों ज्योतिषियों के चक्कर में पड़ा रहा था। राजकीय ज्योतिषी ने चन्दूशाह का काम कर दिया। सम्राट उसके भ्रमजाल में फँस गया। इस प्रकार सम्राट बैचेन रहने लगा कि उसका कुछ अनिष्ट होने वाला है। दरबार में मँत्रियों ने इसका कारण पुछा तो सम्राट ने बताया कि कोई ऐसा व्यक्ति ढूँढो जो मेरे लिए जप जप किसी सुरक्षित स्थान में करे। यह सुनते ही चन्दूशाह ने विचार रखा। इन दिनों आपके साथ ही तो हैं गुरू नानक देव जी के उत्तराधिकारी, उनसे महान और कौन हो सकता है, वही इस कार्य के लिए उपयुक्त व्यक्ति हैं। बादशाह ने गुरू जी को तुरन्त बुला भेजा, गुरू जी ने बादशाह को बहुत समझाने का प्रयास किया कि ग्रह-नक्षत्रों का भ्रमजाल मन से निकाल दो। आपके जीवन में किसी प्रकार की विपक्ति नहीं आने वाली है किन्तु वह हठ करने लगा कि नहीं कृप्या आप मेरे लिए 40 दिन अखण्ड घोर तपस्या करें। गुरू जी ने यह कार्य भी करना स्वीकार कर लिया। इस पर चन्दू द्वारा सिखाये गये मँत्रियों द्वारा सुरक्षित स्थल के रूप में ग्वालियर के किले को सुझाया गया। गुरू जी ग्वालियर के किले के लिए पस्थान कर गये। ग्वालियर के किले का स्वामी जिसका नाम हरिदास था, चन्दूशाह का गहरा मित्र था, उस पर चन्दू को पूर्ण भरोसा था, इसलिए चन्दूशाह ने उसे पत्र लिखा कि तेरे पास हरगोबिन्द साहिब जी तपस्या करने आ रहे हैं, इन्हें विष दे देना। वह वापिस जीवित नहीं लौटने चाहिए। इस कार्य के लिए उसे मुँह माँगी धनराशि दी जायेगी।

 

  • नोट: कुछ इतिहासकार लिखतें हैं कि जहाँगीर ने गुरू जी को निमँत्रण देकर अपने पास बुलाया और धोखे से गिरफ्तार करके ग्वालियर के किले में बन्दी बना लिया। यह बात कैसे सत्य हो सकती है, क्योंकि गुरू जी तो जहाँगीर के कहने पर ग्वालियर के किले में नजरबन्द थे और यह सब जाल चन्दू का ही फैलाया हुआ था।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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