SHARE  

 
jquery lightbox div contentby VisualLightBox.com v6.1
 
     
             
   

 

 

 

32. भाई भैरों जी

श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब जी अपने जीवन के अन्तिम दिनों में कीरतपुर साहिब क्षेत्र में रहने लगे थे। यह नगर आपके बड़े सुपुत्र श्री बाबा गुरूदिता ने बसाया था। इस क्षेत्र का नरेश ताराचन्द था। जिसे गुरू जी ने जहाँगीर की कैद से ग्वालियर के किले से स्वतँत्र करवाया था। स्थानीय लोग गुरू जी का बहुत सम्मान करते थे और श्री गुरू नानक देव जी द्वारा चलाये गये पँथ पर अथाह श्रद्धा रखते थे। किन्तु कुछ रूढ़िवादी लोगों ने एक छोटी सी पहाड़ी के शिखर एक पत्थर को तराशकर एक मूर्ति का निर्माण किया हुआ था, जिसे वे नयना देवी कहकर सम्बोधन करते थे। उनके भोलपन से वहाँ का स्थानीय पुजारी खूब लाभ उठाता था और जनसाधारण का शौषण करता था। जब यह बात वहाँ के एक स्थानीय सिक्ख को मालूम हुई, जिसका नाम भैरों था, उसने अनपढ़ तथा साधारण भक्तों को बहुत समझाने का प्रयास किया कि हमें विवेव बुद्धि से काम लेना चाहिए, व्यर्थ में अपना धन, समय और शक्ति नष्ट नहीं करनी चाहिए। प्रभु तो रोम रोम मे रमा हुआ राम है, यदि हम निराकार की उपासना करें तो इन आडम्बरों से बचा जा सकता है और शान्ति प्राप्ति का भी अदभुत आभास होगा। इस बात को स्पष्ट करने के लिए उन्होंने भक्त कबीर जी जी रचना सुनाई, जिसमें भक्त मालनी को सम्बोधन करके समझा रहे हैं कि तु भूल में है, सुन ! तुमने जीवन को निरजीव को भेंट किया है, इसलिए कल्याण सम्भव नही क्योंकि फूल में जीवन है और पत्थर की मूर्ति नीरजीव।

 

पाती तौरे मालिनी पाती पाती जीउ ।।
जिसु पाहन को पाती तौरे, सो पाहन निरजीउ ।।
भूली मालनी है एउ ।। सतिगुरू जागता है देउ ।।

किन्तु लोग कहाँ मानने वाले थे वह वही भेड़चाल ही चले जा रहे थे। फिर एक दिन भाई भैरों जी को एक युक्ति सुझी, उन्होंने लोगों के गलत विश्वासों को समाप्त करने के लिए मूर्ति नयना देवी जी नाक तोड़ डाली। इस पर मूर्ति पूजक बहुत छटपटाये किन्तु वे भाई भैरों जी का सामना नहीं करे पाये क्योंकि उनकी बात में तथ्य था और वह हर दृष्टि से शक्तिशाली थे। अतः मूर्ति समुदाय ने स्थानीय नरेश राजा ताराचन्द के पास भाई भैरों जी की शिकायत की। नरेश ताराचन्द ने बहुत ही सोच विचार के बाद इस दुखान्त को श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब जी के सम्मुख रखा। उन्होंने तुरन्त भाई भैरों जी को बुलाया। भाई भैरों जी शायद इसी समय की प्रतीक्षा में बैठे थे। उन्होंने अपने ऊपर लगे आरोप के उत्तर में कहा: आपको पहले देवी से पूछना चाहिए कि उसकी नाक किसने तोड़ी है ? यह सुनते ही दरबार में हंसी फैल गई। ताराचन्द ने कहा: कि देवी से पूछा नही जा सकता, क्योंकि वह बोलती नहीं, वह तो पत्थर की बेजान एक कलाकृति है। इस पर भाई भैरों जी ने कहा: बस मैं भी तो "यही कहना चाहता था" कि जो मूर्ति बेजान है, उसके आगे शीश झुकाने के क्या लाभ, वह तो अपनी सुरक्षा भी नहीं कर सकती। अतः वहाँ जो आडम्बर रचा जाता है, वह सब कर्मकाण्ड है। इनसे कुछ प्राप्त होने वाली नहीं, केवल पुजारी लोगों की जीविका का साधन मात्र है। आप द्वारा फल-फूल, दूध मिठाइयाँ इत्यादि सब व्यर्थ चले जाते हैं। क्यों न हम विवेक-बुद्धि से विचार करके उस पूर्ण परमात्मा की उपासना करें जो सर्वत्र विद्यमान है।
भाई साहिब जी की सूक्ष्म विचारधारा सुनकर सभी निरूतर होकर शान्त हो गये।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
            SHARE  
          
 
     
 

 

     

 

This Web Site Material Use Only Gurbaani Parchaar & Parsaar & This Web Site is Advertistment Free Web Site, So Please Don,t Contact me For Add.