श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब जी को करतारपुर से सन्देश मिला कि आपके यहाँ पोत्र ने
जन्म लिया है। वह करतारपुर से कीरतपुर पहुँचे। आपने जब माता राजकौर की गोदी से
पोत्र को अपनी गोदी में लिया तो बालक के लक्ष्य देखकर आपने कहा? यह बालक हमारे ताऊ
पृथीचँद जैसे लक्ष्णों का स्वामी होगा। इसको माया के अतिरिक्त कुछ नहीं सुझेगा। आपने
बालक का नाम दिया धीरमल। आपका विचार था कि शायद नाम का प्रभाव उसकी चँचल प्रवृति पर
कुछ अँकुश रख सकेगा। समय के अन्तराल में जब चार वर्षों बाद आपको सूचना मिली कि आपके
यहाँ दूसरे पोत्र ने जन्म लिया है तो आप पुनः कीरतपुर पधारे। इस बार आपने जब नवजात
शिशु को गोदी में उठाया तो आप बालक के दर्शन करके अति प्रसन्न हुए। आपने कहा? यह
बालक क्या है, स्वयं हरि मानव रूप धारण करके पृथ्वी पर आ विराजे हैं। आपने बालक को
प्रणाम किया और बालक को नाम दिया हरिराये। आपने अपने बेटे गुरूदिता जी को आदेश दिया
कि बालक के पालन-पोषण पर ध्यान दिया जाये। करतारपुर में शाही सेना से अन्तिम युद्ध
के पश्चात आप कीरतपुर ही निवास करने लगे। इस बीच अकस्मात जब श्री गुरूदिता जी का
निधन हो गया तो आपने हरिराये जी को अपनी देखरेख में लिया। उस समय उनकी आयु केवल 4
वर्ष की थी।