श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब जी प्रचार दौरे के अर्न्तगत विचरण कर रहे थे तो उन्हें
बताया गया कि निकट ही बाठ नाकम ग्राम है, यहाँ श्री गुरू नानक देव जी के बड़े
सुपुत्र श्रीचन्द जी निवास करते हैं। आप जी दर्शन करने के विचार से उनके यहाँ पहुँचे।
उस समय आपके दो बड़े बेटे गुरूदिता जी व सुरजमल जी आपके साथ ही थे। बाबा श्री चन्दजी
की आयु उन दिनों 138 वर्ष की थी। श्री चन्दजी, गुरू जी के बेटों को देखकर अति
प्रसन्न हुए, आप जी ने गुरू जी से प्रश्न किया, आपके कितने बेटे हैं, तो गुरू जी ने
उत्तर दिया कि पाँच थे, किन्तु एक का देहान्त हो गया है। इस पर श्रीचन्द जी कहने लगे
कि इनमें से हमें कोई मिल सकता है ? गुरू जी ने उत्तर दिया, सभी आपके ही हैं, जिसे
चाहे ले सकते हैं। गुरूदिता की की रूपरेखा कुछ-कुछ श्री गुरू नानक देव जी से मिलती
थी। अतः श्रीचन्द जी ने कहा? कृप्या आप अपना बड़ा सुपुत्र हमें दे दिजिए। गुरू जी ने
तुरन्त सहमति दे दी।
बाबा श्री चन्द जी ने साहिबजादे गुरूदिता जी को सामने से उठाकर
अपने आसन पर बिठा दिया और कुछ उदासी सम्प्रदाय के चिन्ह, खड़ाएँ वैरागनी, भगवे कपड़े
इत्यादि उन्हें दिये और कहा यह सुपुत्र आज से हमारा उत्तराधिकारी हुआ। उन दिनों
श्रीचन्द जी के चार प्रमुख केन्द्र थे, उनको धूणियाँ कहा जाता था। साधू सन्यासियों
द्वारा भक्ति करते समय तापने वाली आग जिसमें से सदैव घूँआ निकलता रहता है अर्थात
धूणियाँ, इन चार धूणियों के प्रमुखों के नाम इस प्रकार हैं? 1. पहले बाबा अलमसत जी,
2. दूसरे बाबा बालू हसणा जी, 3. तीसरे बाबा गोइंदा जी तथा 4. चौथे बाबा फूल जी।