बाबा बुडढा जी श्री गुरू नानक देव जी को उनकी चौथी प्रचार यात्रा के अन्त में एक
किशोर के रूप में मिले थे। गुरू जी ने बालक की प्रतिभा व तीक्ष्ण बुद्धि को देखते
हुए उनको अपने आश्रम करतारपुर (रावी नदी के किनारे वाला) में अपने परम शिष्यों में
स्थान दे दिया और उनका वहीं प्रशिक्षण होने लगा। बाबा बुडढा जी के हाथों 5 गुरूजनों
को गुरू परम्परा के अनुसार विधिवत तिलक दिया गया। जब वह दीर्ध आयु के कारण परिश्रम
करने में अपने को असमर्थ महसूस अनुभव करने लगे तो उन्होंने गुरू जी से आज्ञा माँगकर
अपने पैतृक ग्राम रामदास में अपने परिवार में जाने की इच्छा प्रकट की। गुरू जी ने
उन्हें सहर्ष विदा किया। जाते समय बाबा बुडढा जी ने गुरू चरणों में निवेदन किया कि
कृप्या मेरे अन्तिम समय में अवश्य ही दर्शन देकर मुझे कृतार्थ करें। गुरू जी ने
उन्हें वचन दिया कि ऐसा ही होगा। आप जी का जन्म सुँधे रँघावे के गृह माता शोरा जी
के उदर से सन 1506 अक्टुबर को कथू नँगल ग्राम जिला श्री अमृतसर साहिब जी में हुआ
था। इन दिनों आपने अपना अन्तिम समय निकट जानकर श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब जी को
सन्देश भेजा कि वह उन्हें दर्शन देकर कृतार्थ करें सन्देश प्राप्त होते ही गुरू जी
ग्राम रामदास पहुँचे और उन्होंने बाबा बुडढा जी से कहा?
आपने पाँच गुरूजनों की
निकटता प्राप्त की है अतः हमें कोई उपदेश दें। इस पर बाबा जी के नेत्र द्रवित हो गये
और वह कहने लगे कि आप सूर्य हैं और मैं जुगनू। आपको उस प्रभु ने समस्त विश्व की
बरकतों से निवाजा है। बाबा बुडढा जी ने अपने लड़के भाना जी का हाथ गुरू जी के हाथ
में थमा दिया और निवेदन किया कि इसे आप सदैव अपना सेवक जानकर कृतार्थ करते रहें।
अगले दिन प्रातःकाल बाबा जी ने शरीर त्याग दिया। गुरू जी ने उनकी शव यात्रा में भाग
लिया और अपने हाथों से उनकी अँत्येष्टि क्रिया सम्पन्न की। तदपश्चात उनके सुपुत्र
श्री भाना जी को पगड़ी भेंट की। निधन के समय बाबा जी की आयु 125 वर्ष थी।