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21. शाह उददौला, पीर से भेंट

श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब जी कश्मीर से लौटते समय पश्चिमी पँजाब के जिला गुजरात में ठहर गये। जब आप वहाँ पर पड़ाव डालकर विश्राम कर रहे थे तो स्थानीय संगत आपके दर्शन को उमड़ पड़ी। नगर में चारों और चहलपहल दिखाई देने लगी। तभी वहाँ के स्थानीय पीर शाह-उद-दौला जी ने अपने शिष्यों से पूछा: नगर में कौन आया है जो बहुत धूमधाम है ? उत्तर में उन्हें बताया गया: कि श्री गुरू नानक देव जी के छठवें उत्त्तराधिकारी श्री गुरू हरगोबिन्द साहिब जी आये हुए हैं। इस पर उनकी जिज्ञासा बढ़ गई। उन्होंने फिर पूछा: कि एक दरवेश के आने से इतनी हलचल कैसे हो गई। तो उन्हें बताया गया: कि यह साधारण फकीर नहीं हैं, यह तो राजसी वेशभूषा में विचरण करते हैं और इनके साथ सभी प्रकार के विलासता के साधन उपलब्ध हैं। यहाँ तक कि अपनी पत्नी तथा बच्चों को भी साथ लिए घूमते हैं।यह सब जानकारी प्राप्त करके पीर शाह-उद-दौला के मन में बहुत से सँश्यों ने जन्म लिया, वह रह नहीं सके। उन्होंने गुरू जी से भेंट करने का निश्चय किया। जब पीर जी का गुरू जी से सामना हुआ तो पीर जी कहने लगेः

 

हिन्दु क्या और पीर क्या ? औरत क्या और फकीर क्या ?
दौलत क्या और दरवेश क्या ? पुत्र क्या और योगेश क्या ?

इन प्रश्नों का उत्तर गुरू जी ने उसी अँदाज में दियाः

औरत ईमान है, दौलत गुजरान है
पुत्र निशान है, करनी प्रधान है, फकीर न हिन्दु न मुसलमान है।

उत्तर बहुत ही सुलझा हुआ था, अतः पीर जी सन्तुष्ट होकर नमस्कार करते हुए वापिस लौट गये।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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