पीलीभीत से लौटते समय श्री गुरू हरिगोबिन्द साहिब जी हरिद्वार ठहरे। आपके साथ हर
समय अपना सैन्य बल रहता था। आपका वैभव देखकर महाराष्ट्र से आए हुए शिवाजी मराठा के
गुरू समरथ रामदास ने सँशय व्यक्त किया और कहा कि मुझे बताया गया है कि आप श्री गुरू
नानक देव जी के उत्तराधिकारी हैं किन्तु श्री गुरू नानक देव जी तो त्यागी पुरूष थे
? जबकि आप शाही ठाठबाठ एवँ शस्त्रधारी हैं ? आप कैसे साधु हुए ? इस पर गुरू जी ने
उत्तर दिया कि श्री गुरू नानक देव जी ने माया त्यागी थी सँसार नहीं। हमारा
सिद्वान्त है: बातन फकीरी ।। जाहिर अमीरी ।। शस्त्र गरीब की रक्षा ।। जालम की भक्षा
।। समरथ रामदास इस उत्तर से बहुत प्रभावित हुए और कहा? यह बात हमारे मन भा गई। वहाँ
से गुरमति सिद्धान्त उन्होंने पल्ले बाँध लिया और समय मिलते ही अपने परम शिष्य शिवा
को शस्त्र उठाकर धर्म युद्ध की प्रेरणा दी।