गुरू हरगोबिन्द साहिब जी ने अपन पूर्वज गुरूजनों के अनुसार कोई भी आध्यात्मिक ज्ञान
की काव्य रचना नही की किन्तु वह अपने पूर्वज गुरूजनों की बाणी पर अथाह श्रद्धा रखते
थे। वह प्रायः गुरूबाणी का कीर्तन श्रवण करते समय एकाग्र हो जाते और उनकी सुरति
प्रभु चरणों में जुड़ जाती थी। एक दिन दरबार सजा हुआ था और संगत को शुद्ध बाणी
उच्चाराण का महत्व बता रहे थे कि जहां शुद्ध बाणी पढ़ने से अर्थ स्पष्ट होते हैं वहीं
मनुष्य को आत्मबोद्ध भी होता चला जाता है। भावार्थ यह कि शुद्ध बाणी पढ़नी ही
आध्यात्मिक प्राप्तियाँ करवाती है। तभी उनके मन मे आया कि संगत में ऐसा कोई व्यक्ति
है तो शुद्ध जपुजी सहिब जी का पाठ करने में निपुण हो ? तभी उन्होंने घोषणा की: है कोई व्यक्ति जो हमें शुद्ध जपुजी
साहिब की बाणी का पाठ सुना सकता हो ? वैसे दरबार में बहुत से सुलझे हुए व्यक्ति और
भक्तजन थे जो यह कार्य सहज में कर सकते थे किन्तु सँकोशवश कोई भी साहस करके सामने
नहीं आया। जब गुरू जी ने संगत को दोबारा बोला तो एक व्यक्ति उठा, जिसका नाम भाई
गोपाल दास जी था, वह गुरू जी के समक्ष हाथ जोड़कर विनती करने लगा कि यदि मुझे आज्ञा
प्रदान करें तो मैं शुद्ध पाठ करने का पूर्ण प्रयास करूंगा।
गुरू जी ने उन्हें एक
विशेष आसन पर बिठाया और गुरूबाणी शुद्ध सुनाने का आदेश दिया। भाई गोपाल दास जी बहुत
ध्यान से सुरति एकाग्र करके पाठ सुनाने लगे। शुद्ध पाठ के प्रभाव से संगत आत्मविभोर
हो उठी, उस समय आलौकिक आँनद का अनुभव सभी श्रोतागण कर रहे थे। गुरू जी ने भी अपने
सिंहासन पर बैठे किसी दिव्य अनुभूतियों में खोये अपने सिंहासन में घीरे-धीरे सरकने
लगे, जब आप 3-4 चौथाई सरक गये तो उस समय अकस्मात भाई गोपालदास जी के दिल में कामना
उत्पन्न हुई कि यदि गुरू जी मुझे पुरस्कार रूप में एक इरानी घोड़ा दे दें तो मैं उनका
कृतज्ञ हो जाऊँगा। उसी समय गुरू जी ने पुनः अपने सिंहासन पर पूर्ण रूप से विराजामन
हो गये। पाठ की समाप्ति पर गुरू जी ने रहस्य स्पष्ट करते हुए कहा? संगत जी, हम
शुद्ध पाठ से प्रतिक्रम में गुरू नानक देव जी की जो विरासत हमारे पास है, वह गुरू
जी की गद्दी ही भाई गोपाल जी को सौंपने लगे थे, किन्तु उनके दिल में पाठ के अन्तिम
भाग में तृष्णा ने जन्म लिया कि मुझे यदि घोड़ी उपहार में मिल जाये तो कितना अच्छा
हो। अतः हम उन्हें घोड़ी उपहार में दे रहे हैं। भाई गोपाल दास जी ने स्वीकार किया कि
उनके मन में इसी सँकल्प ने जन्म लिया था। भाई गोपाल दास जी ने कहा इम साँसारिक जीव
हैं, तुच्छ सी वस्तुओं के लिए भटक जाते हैं।