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4. जक्रिया खान और सिक्ख-4

हैदरी झण्डा लहराकर साम्प्रदायिक युद्ध का आह्वान
जब सिक्खों के दमन की पँजाब के राज्यपाल जक्रिया खान की सभी नीतियाँ बुरी तरह विफल हुई तो उसने हारकर सिक्खों के सरकार विरोधी युद्ध को कुचलने के लिए ‘जेहाद’ अर्थात धर्म युद्ध का नारा देकर साधारण मुसलमान जनता को सिक्खों के विरूद्ध उकसाया। मीर इनायत उल्ला के नेतृत्त्व में लाहौर की ईदगाह में हैदरी झण्डा गाढ़ दिया गया। समस्त पँजाब के गाँव देहातों में काफिरों के विरूद्ध बहुत धुआँधार भाषाण हुए। जिससे प्रेरणा पाकर बलोच और सैयद मुगल और पठान, भट्टी और जाट, रँगड़ और राजपूत, तेली, मोची, डोम, जुलाहे, गुजर, डोगरे तथा अराई इत्यादि सभी प्रकार के मुसलमान इस धर्म युद्ध में सिक्खों के विरूद्ध लगभग एक लाख की सँख्या में एकत्रित हो गए। समय रहते इस विशाल जनआन्दोलन की सूचना सिक्खों को भी मिली। उन्होंने बहुत गम्भीरता से इस विपत्ति का सामना करने की योजना बनाई। युद्ध के आरम्भ में तो वे दूर-दराज के वनों और पर्वतों की कन्दराओं में छिप गए थे। जब शत्रु पक्ष उनका पीछा करता हुआ थक हार गया तो वे कुछ समय के उपरान्त अकस्मात् ही प्रकट होकर गाजियों पर टूट पड़े और हजारों को यमपुरी पहुँचा दिया। उन्होंने जहादियों से प्रचुर मात्रा में युद्ध सामग्री और घोड़े छीन लिए। सँक्षेप में कुछ हजार सिक्खों ने लगभग एक लाख मुसलमानों को इस युद्ध में बुरी तरह परास्त कर दिया। इस गोरिला युद्ध में जब गाजी सम्भले तो उन्होंने भी सिक्खों का दूर तक पीछा किया, किन्तु वे कब हाथ आने वाले थे, वे स्थानीय भौगोलिक स्थितियों से भली भान्ति परिचित होने के कारण जल्दी ही अदृश्य हो जाते थे। अब सिक्खों ने अपने आपको बहुत से समूहों में बाँट लिया। दिन के समय वे घने वनों में छिप जाते और रात के समय गाज़ी सेना पर आक्रमण करके उनके यहाँ लूटमार मचाते। इस प्रकार सरकारी सहायता प्राप्त गाज़ी सेना से कई दिनों तक छोटी-छोटी सिक्खों की मुठभेड़ होती रहती। कभी गाज़ी सिक्खों का पीछा करते तो कभी सिक्ख गाजियों का पीछा करते, इस प्रकार लगभग दो महीने व्यतीत हो गये। एक बार गाजी सेना ने एक सिक्खों के काफिले को घेर लिया और उसको बहुत क्षति पहुँचाई परन्तु उसमें से भी कुछ वहाँ से निकल भागने में सफल हो गए। उन्होंने दूसरे सिक्ख जत्थों को इस पराजय की सूचना दी। सूचना पाते ही वह जत्था लगभग 20 कोस की यात्रा करके भोर होने से पहले भीलोवाल नामक क्षेत्र में पहुँच गया। यहीं ये विजयी गाजी, विजय के जश्नों का स्वप्न देखते हुए सोए पड़े थे। सिक्खों ने उन्हें वहीं दबोच लिया और सभी को मौत के घाट उतार दिया। जो सम्भल गया, वह सिर पर पैर रखकर लाहौर की तरफ भाग गया और जान बचा ले गया, वरना सिक्खों ने किसी को जीवित रहने नहीं दिया। इस लड़ाई के पश्चात् मुसलमानों के सिर से जेहाद का भूत उतर गया और उन्होंने हैदरी ध्वज को आग लगाकर फिर कभी गाज़ी न बनने की कसम खाई। इस विजय की प्राप्ति पर सिक्खों के हाथ बहुत बड़ी सँख्या में अस्त्र-शस्त्र व घोड़े हाथ लगे।

सिंघनियों ने शाही सेना के छक्के छुड़ाए
जिला श्री अमृतसर साहिब जी, ग्राम चविंडा में सरदार बहादुर सिंह जी के सुपुत्र का शुभ विवाह सन् 1727 ईस्वी में रचा गया। अतिथियों का स्वागत हो रहा था कि सभी किसी चुगलखोर ने इनाम के लालच में गश्ती सैनिक टुकड़ी को सूचना दी कि चविंडा ग्राम में एक विवाह पर दूर-दूर से सिक्ख लोग आकर इक्ट्ठे हुए हैं, यही अवसर है, उनको दबोच लिया जाए। परन्तु गश्ती सैनिक टुकड़ी के घोड़ों के पांवों की धूल व गर्द को देखकर सतर्क सभी सिक्ख सावधान हुए। उन्होंने समय रहते ही शस्त्र सम्भाले और युद्ध के लिए तैयार होकर खड़े हो गए परन्तु विचार हुआ कि विवाह का समय है, रक्तपात अच्छा नहीं, क्या अच्छा हो, जो सभी योद्धादारी सिंघ कुछ समय के लिए जँगल में चले जाएँ। तद्पश्चात ग्राम के मुखिया अथवा चौधरी फौजी टुकड़ी को समझा बुझाकर किसी न किसी तरह वापस लौटा देंगे। ऐसा ही किया गया। जब गश्ती फौजी टुकड़ी वहाँ पहुँची तो उनको वहाँ कोई भी केशधारी सिक्ख दिखाई न दिया। परन्तु उन्हें पूर्ण विश्वास था कि उनको जो सूचना उनके गुप्तचर ने दी है, वह गल्त नहीं हो सकती। अतः वे लोग हवेली की तलाशी के लिए बल देने लगे। इस पर स्थानीय चौधरी ने कहा कि आप का एक व्यक्ति अन्दर जाकर देख सकता है, अन्दर कोई पुरूष नहीं, केवल महिलाएँ ही हैं। यह सुनते ही सभी मुगल फौजियों ने कहा कि इससे अच्छा और कौन सा समय हमें मिलेगा, चलो औरतों को ही दबोच लें और वे हवेली के अन्दर घुसने का प्रयास करने लगे। मुगल फौजियों की बदनियती देखकर वहाँ सतर्क खड़ी बुजुर्ग महिलाओं ने तुरन्त हवेली के अन्दर की युवा स्त्रियों को अपने सतीत्व की रक्षा के लिए मर मिटने के लिए प्रेरित किया। बस फिर क्या था, वे वीरांगनाएँ घरेलु औजार लेकर मोर्चा बना बैठीं। विवाह होने के कारण लगभग 60 स्त्रियों की सँख्या थी। उन्होंने अपने हाथों में कुल्हाड़ी, दाती, तंशा, सोटे, कृपाण इत्यादि लेकर फौजियों पर एक साथ मिलकर वार किए। फौजियों को इस बात की कोई आशा न थी। मिनटों में ही कई फौजी धरातल पर गिरते हुए पानी माँगने लगे। यह देखकर महिलाओं में मनोबल जागृत हो गया। उन्होंने अपनी जान की बाजी लगाकर शत्रु पर हमला कर दिया। इस प्रकार कई फौजी वहीं मारे गँ और बाकी घायल अवस्था में जान बचाकर वहाँ से भाग खड़े हुए।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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