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2. जक्रिया खान और सिक्ख-2

अतः जहाँ युद्ध प्रारम्भ हुआ, उस बाग के वृक्षों की आड़ लेकर सिंघ लड़ने लगे और ऊँचे स्वर में ‘जो बोले सो निहाल, सत श्री अकाल’ का नारा बुलँद करने लगे। इस जैकारे की गर्ज से शत्रु सेना में भय की लहर दौड़ गई। उनका साहस टूट गया। वे रक्षात्मक युद्ध लड़ने लगे। उस समय सिक्खों ने अपने प्राणों की बाजी लगा दी। अपनी तलवारों से बहुत से शाही सिपाहियों को मौत के घाट उतार दिया। शत्रु सेना की बँदूकों की गोलियाँ अँधकार के कारण व्यर्थ गईं। जब सूर्य पूर्णतः उदय हुआ तो शत्रु सेना का भारी जानी नुक्सान हो चुका था। वे अपने लोगों के शवों के ढ़ेर को देखकर जान बचाकर भागने में ही अपनी भलाई समझने लगे। इस प्रकार शाही सेना धैर्य छोड़कर पीछे हटने लगी और फिर पीठ दिखाकर भाग गई। इस बीच सरदार बघेल सिंह बहुत से घावों के कारण शरीर त्यागकर गुरू चरणों में जा विराजे। शत्रु पक्ष में जाफर बेग के दो भतीजे तथा एक अन्य सिपाही मारे गए। अधिकाँश सिपाही घायल हुए। इस युद्ध के पश्चात् सिक्खों ने अनुभव लगाया कि प्रशासन अपनी पराजय का बदला लिए बिना नहीं रहेगा। अतः किसी बड़े युद्ध होने की सम्भावना बढ़ गई है, वहीं सिक्ख समुदाय में आत्मविश्वास की लहर दौड़ गई कि यदि हम सँगठित होकर शत्रु का सामना करें तो क्या कुछ नहीं कर सकते ? जाफर बेग पराजय की गलती के कारण तुरन्त लाहौर नगर गया और वहाँ राज्यपाल जक्रियाखान से मिला और उसे सिक्खों की बढ़ी हुई शक्ति का बहुत बढ़ा चढ़ाकर वर्णन किया, जिसे सुनकर जक्रिया खान ने क्रोध में आकर सिक्खों के दमन के लिए दो हजार सिपाही तथा अस्त्र-शस्त्रों का भण्डार देते हुए कहा कि ‘मैं अब उस क्षेत्र में किसी सिक्ख को जीवित नहीं देखना चाहता’। बस फिर क्या था, सेना नायक सोमनखान के नेतृत्त्व में शाही सेना ने भाई तारा सिंह के बाड़े पर आक्रमण करने के लिए प्रस्थान कर दिया। यह सूचना लाहौर के सहजधारी सिक्खों ने तुरन्त भाई जी को भेज दी और उनसे अनुरोध किया कि आप कुछ दिनों के लिए अपना आश्रम त्यागकर कहीं और चले जाएँ। इस पर भाई जी ने उस समस्त क्षेत्र के सिक्खों की सभा बुलाई तथा बहुत गम्भीरता से विचारविमर्श हुआ। अधिकाँश सिक्खों ने युद्ध समय के लिए उन्हें आश्रम त्यागकर कहीं गुप्तवास में जाने के लिए परामर्श दिया। इस पर भाई जी ने अपनी ‘पोथी साहिब जी’ (गुरूबाणी) से वाक लिया। उस समय शब्द उच्चारण हुआ:

सूरा सो पहिचानीऐ, जु लरै दीन के हेतु ।
पुरजा पुरजा कटि मरै कबहु न छाडै खेतु । अंग 1105

इस पँक्ति के अर्थ भाव को पढ़कर भाई तारा सिंह ने आश्रम को त्यागने का निर्णय स्थगित कर दिया और शहीद होने का दृढ़ निश्चय करके आश्रम के बाड़े में मोर्चाबन्दी करने में व्यस्त हो गए। उन्हें कई सिक्खों ने समझाने का प्रयत्न किया कि समय की नाजुक परिस्थितियों को मद्देनजर रखते हुए गोरिल्ला युद्ध का आश्रय लेना चाहिए। हम इतनी विशाल सैन्यबल के समक्ष टिक नहीं सकेंगे। इस प्रकार यही डटे रहना आत्महत्या के समान है, किन्तु वह आत्मबल के सहारे अडिग रहे। उनकी दृढ़ता देखकर 21 सिंह भी उनके साथ हो लिए। बाकी अपनी नीति के अनुसार अज्ञातवास के लिए चले गए। पट्टी क्षेत्र के जाफर बेग के पराजित होने पर सिंहों के हाथ बहुत से अस्त्र-शस्त्र व घोड़े आए थे, वे इस विपत्ति के समय बहुत सहायक सिद्ध होने वाले थे। भाई तारा सिंह जी ने अपने आश्रम के बाड़े को किले का रूप दिया। वहाँ प्रत्येक प्रकार की रक्षा सामग्री जुटाई गई। अब शत्रु सेना की प्रतीक्षा करने लगे। अन्त में प्रतीक्षा समाप्त हुई, सेना ने 2000 की विशाल सँख्या में भाई तारासिंह के आश्रम पर भोर के समय आक्रमण कर ही दिया। सिंह उस समय भले ही सँख्या में आटे में नमक के समान थे, परन्तु सभी शहीद होने के लिए तत्पर थे। आगे से आक्रमणरियों पर सिक्खों ने मोर्च से गोलियाँ दागनी शुरू कर दीं, आगे के जवान धरती पर गिरने लगे। घमासान युद्ध हुआ। मोमनखान ने तभी बेग को आगे भेजा। तभी बेग को आगे बढ़ता देखकर, घात लगाकर बैठे हुए भाई तारा सिंह जी ने उसके मुँह पर भाला दे मारा। बेग के मुँह से खून के फव्वारे फूट पड़े। वह शीघ्र ही पीछे मुड़ा। पीछे खड़े मोमन खान ने तभी बेग को व्यँग किया कि: खान जी ! पान खा रहे हो ? तभी बेग ने मारे दर्द के कहा कि: सरदार तारा सिंघ आगे पान के बीड़े बाँट रहा है। आप भी आगे बढ़कर ले आओ। इस बार मोमन खान ने अपने भतीजे मुराद खान को भेजा, जिसका सिर सरदार भीम सिंह ने काट दिया। अब मोमन खान ने सारी फौज को सिंघों पर धावा बोलने का आदेश दिया। गोलियाँ समाप्त होने पर सिंघ मोर्चे छोड़कर तलवारें लेकर रणक्षेत्र में कूद पड़े। सिंघों ने मरने-मारने का युद्ध किया। इस प्रकार भाई तारा सिंह जी ने अनेकों को सदा की नींद सुलाकर स्वयँ भी शहीदी प्राप्त की। जब रणभूमि में सिक्खों के शवों की गिनती की गई तो वह केवल बाईस थे जबकि हमलावर पक्ष के लगभग सौ जवान मारे जा चुके थे और बड़ी सँख्या में घायल थे।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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