9. डल्लेवालिया मिसल
डल्लेवालिया मिसल के सँस्थापक सरदार गुलाब सिंह जी थे। उल्लेवाली गाँव रावी नदी के
किनारे डेराबाबा नानक क्षेत्र में एक महत्त्वपूर्ण स्थान है। इसी गाँव के ही गुलाबा,
जो परचून की दुकान किया करते थे। मुगलों के अत्याचारों को देखकर उनसे लोहा लेने के
लिए अमृतपान करके सिंह सज गये और एक विशाल जवानों का जत्था बना लिया। अब इनका नाम
गुलाब सिंह हो गया था। सन् 1745 ईस्वी में सरबत खालसा सम्मेलन में गुरमता पारित किया
गया कि रावी नदी के किनारे एक किला बनाया जाए जो शत्रुओं को रोकने तथा उनसे सुरक्षा
प्रदान करने के काम आ सके। किला बन जाने के बाद सरदार गुलाब सिंह को इसकी देखभाल का
कार्य सौंपा गया। सरदार गुलाब सिंह के निकटवर्ती भाई गुरदयाल सिंह, हरिदयाल व जयपाल
सिंह भी अमृतपान करके इसी जत्थे में सम्मिलित हो गँ थे। छोटे घल्लुघारे के समय जब
सिक्ख तीनों दिशाओं से घिर गए थे तो उस समय एक तरफ रावी नदी थी, दूसरी तरफ तपता हुआ
रेगिस्तान तथा पीछे लखपत राय और यहिया खान की सेनाएँ आ रही थीं। उस विकट समय में
सिक्खों ने यह विचार बनाया कि रावी नदी पार कर ली जाए। महीना ज्येष्ठ का था और दरिया
अपने यौवन पर था। अतः पानी में तीव्र गति थी। ऐसे समय में सरदार जयपाल सिंह और उनके
भाई हरिदयाल सिंह ने परामर्श दिया कि सर्वप्रथम हम दोनों घोड़ों पर सवार होकर नदी
पार करने का प्रयास करते हैं। यदि हम सफल हो गए तो सभी वहीर अर्थात बाकी परिवारों
सहित काफिला नदी पार करने का साहस करे, अन्यथा नहीं। ऐसा ही किया गया परन्तु
दुर्भाग्य से वे दोनों नदी में बह गए। अतः बाकी सिक्खों ने नदी पार करने की योजना
रद्द कर दी। इस प्रकार इन योद्धाओं ने अपने प्राणों का बलिदान देकर एक बड़ी भूल करने
से समस्त सिक्खों का जीवन सुरक्षित कर दिया। सन् 1748 ईस्वी में जब मिसलों का
अस्तित्त्व प्रकट हुआ तो सरदार गुलाब सिंह की मिसल डल्लेवालिया मिसल कहलाई क्योंकि
इस जत्थे के अधिकाँश जवान इसी गाँव के थे। सरदार गुलाब सिंह जी कलानौर के रणक्षेत्र
में सन् 1755 ईस्वी में वीरगति को प्राप्त हुए। तब उनके स्थान पर मिसल के जत्थेदार
सरदार गुरदयाल सिंह जी को बनाया गया परन्तु अगले वर्ष वे भी एक युद्ध में शहीदी
प्राप्त कर गए। तद्पश्चात् सरदार तारा सिंह घेबा जी मिसल के अध्यक्ष बने। सन् 1758
ईस्वी में उड़मुड़ टाँड के युद्ध में दीवान विश्वम्बर दास की हत्या हो गई। तब सिक्खों
ने दुआबा, जालन्धर पर अपना अधिकार कर लिया। उस समय लगभग तीन लाख लगान का क्षेत्र
सरदार तारा सिंह घेबा की मिसल डल्लेवालिया को मिला। सन् 1764 ईस्वी में जब सिक्खों
ने जैन खान को मौत के घाट उतारकर सरहिन्द फतेह किया, उस समय इस मिसल को बहुत बड़े
भू-भाग पर अधिकार करने को मिला। इस प्रकार इस मिसल की वार्षिक आय 8 लाख रूपये और बढ़
गई। जत्थेदार तारा सिंह जी बहुत अच्छे सेनानायक थे, वे प्रति क्षण पँथ के हित के
लिए अपने प्राण न्योछावर करने के लिए सदैव तत्पर रहते थे। वह अपने साथी मिसलदारों
के साथ कँधे से कँधा मिलाकर रणभूमि में जूझते थे, इसलिए इनकी मिसल बहुत आदर भाव से
देखी जाती थी। अहमदशाह अब्दाली के आक्रमणों का सामना वह डटकर करते रहे थे। उनकी
अधिकाँश टक्कर अब्दाली के सेनानायक जहान खान के संग ही होती रही क्योंकि श्री
अमृतसर साहिब जी की सुरक्षा का भार इन्होंने अपने कँधे पर लिया हुआ था। कसूर नगर पर
नियन्त्रण करते समय आपने भँगी मिसल का साथ दिया। अतः वहाँ से लगभग 4 लाख रूपये की
सम्पत्ति आपके हाथ आई। जब प्रसिद्ध सेठ गोहर दास को आपने अमृतपान करवाकर सिंह सजाया
तो आपकी मिसल का महत्त्व और अधिक बढ़ गया। इस मिसल के सिपाहियों की सँख्या नौ हजार
के लगभग रहने लगी थी। अब्दाली के पराजित होने के पश्चात् सिक्ख मिसलों के आपसी
क्लेश में भाई तारा सिंह जी ने भाग नहीं लिया। जत्थेदार तारा सिंह घेबा की मृत्यु
के पश्चात् महाराजा रणजीत सिंह ने इस मिसल के सभी प्रदेशों को अपने राज्य में मिला
लिया और उनके उत्तराधिकारियों को जागीर देकर शाँत कर दिया गया।