8. नवाई मिसल
नवाई मिसल के सँस्थापक सरदार हीरा सिंह जी थे, जिनका जन्म 1706 ईस्वी में हुआ था।
उन्होंने तीस वर्ष की आयु में भाई मनी सिंह जी से पाहुल (अमृत की दात) प्राप्त कर
ली थी। इनके पिता चौधरी हेमराज जी भरवाल तहसील के चनीया गाँव के निवासी थे, इस गाँव
को नका भी कहते थे। जिन दिनों सिक्ख अपने अस्तित्त्व की सुरक्षा के लिए सँघर्षरत
थे। सरदार हीरा सिंह जी ने अपने गाँव के अन्य जवानों को एकत्रित करके जत्था बना लिया
और बहुत से उत्साहित लोगों का सहयोग प्राप्त करके अपने आसपास के बहुत बड़े भू-भाग पर
नियन्त्रण कर लिया। जल्दी ही वह मुगलों की कमजोरियों का लाभ उठाते हुए नका क्षेत्र
के स्वामी बन गए। इस प्रकार समस्त नाकों पर कब्जा करके सिक्ख सँग्राम में
महत्त्वपूर्ण योगदान डालना प्रारम्भ कर दिया। इनका कार्यक्षेत्र आने वाले
आक्रमणकारियों को रोकना हुआ करता था और सीना तानकर शत्रु का सामना करना होता था और
उसी समय तुरन्त अन्य मिसलों को हमलावर की सूचना पहुँचाना ही इनका कार्य था। बड़े
घल्लूघारे के समय इस मिसल ने ही समय रहते सँदेश दिया था कि अब्दाली महीनों का सफर
दिनों में तय करके सिक्खों पर हमला करने वाला है। सन् 1767 ईस्वी में जब जत्थेदार
हीरा सिंह जी को शिकायतें पहुँची कि बाबा फरीद की गद्दी का वारिस शेखशजाह परम्परागत
मर्यादा छोड़कर हिन्दुओं का दमन करके उनकी भावनाओं से खिलवाड़ कर रहा हैं तो जत्थेदार
हीरा सिंह ने पाकपट्टन पर धावा बोल दिया, इस युद्ध में वह शहीद हो गए और उनकी सेना
वापिस लौट आई। उन दिनों हीरा सिंह जी का पुत्र सरदार डल सिंह नाबालिग था। अतः
जत्थेदारी उनके भाई सरदार धन्नासिंह के पुत्र सरदार नाहर सिंह को मिली। सरदार नाहर
सिंह भी बहुत समय तक जीवित न रहा। कोट कमालिया के युद्ध में सन् 1768 ईस्वी में आप
जी भी शहीद हो गए। जत्थेदार नाहर सिंह के बाद इस मिसल का नेतृत्त्व जत्थेदार रण
सिंह ने किया। जब सभी मिसलों ने अपना प्रभाव क्षेत्र बढ़ाना प्रारम्भ किया तो इस
मिसल ने भी अपना ध्यान मुलतान तथा कसूर क्षेत्रों की तरफ किया। भँगी मिसल वाले इस
मिसल के महत्त्व व शक्ति को जानते थे। अतः जत्थेदार गण्डा सिंह जी ने इस मिसल से
सहायता माँगी ताकि मुलतान को विजय किया जा सके। मुलतान व कसूर क्षेत्र को नियन्त्रण
में करने से इस मिसल का भी बहुत मान-सम्मान बढ़ा। जत्थेदार रण सिंह एक अच्छे नीतिवान
योद्धा थे। उन्होंने सारी मिसलों के बीच अपना सँतुलन कायम रखा हुआ था। अपनी इस
महत्त्वपूर्ण स्थिति के फलस्वरूप ही इस मिसल की सभी के लिए आवश्यकता बनी रही। इस
मिसल का अधिकार क्षेत्रः चनियाँ, कसूर, शखपुर, गुमर तथा कोट कमालिया तक था। जब सन्
1790 ईस्वी में रण सिंह जी का देहान्त हो गया तो जत्थेदारी ज्ञान सिंह के हाथ में आ
गई। इस मिसल के जवानों की सँख्या तीन हजार के लगभग थी। नाकों पर तैनात रहने के कारण
सभी लड़ना मरना अच्छी तरह जानते थे। जत्थेदार रण सिंह ने तो इनको एक कड़ी में बाँधे
रखा था परन्तु जब उन जैसा योग्य सेनानायक ना रहा तो इस मिसल के सिपाही आपस में ही
लड़ने लग गए। सरदार ज्ञान सिंह की मृत्यु सन् 1804 ईस्वी में हुई। उनके पश्चात् सन्
1807 ईस्वी में महाराजा रणजीत सिंह जी ने इस मिसल के समस्त क्षेत्र को अपने राज्य
में मिला लिया और ज्ञान सिंह के पुत्र सरदार काहन सिंह को डेढ़ लाख रूपये की जागीर
दे दी गई।