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7. फुल्कियां मिसल

फुल्कियां मिसल के पूर्वज चौधरी फूल जी थे जो सन्धु जाट कहलाते थे। वर्तमान फुल्कियां रियासतों अर्थात पटियाला, नाभा और जींद के महाराजाओं का सम्मिलित पितामाह बालक फूल था। जिसे सिक्खों के सातवें गुरू हरिराय जी से आशीर्वाद प्राप्त हुआ था कि इस बालक की सन्तानें बहुत बड़े नरेश होंगे। जिनके घोड़े यमुना नदी तक का पानी पिया करेंगे आदि। चौधरी फूल के बेटों रामा और तिलोका को गुरू गोबिन्द सिंह जी ने भी आशीष दी थी क्योंकि इस मिसल के पूर्वज का नाम फूल था। अतः इस मिसल का नाम फुल्कियां पड़ गया। फुल्कियां मिसल के सँस्थापक बाबा आला सिंह जी का जीवनकाल 1696 ईस्वी से 1765 ईस्वी तक का है। आप 1714 ईस्वी में राजनीति में उतरे और अपने पिता की तरह ही तलवार चलाई। जिस प्रकार जालँधर दुआबा के राज्यपाल के विरूद्ध धावा बोल दिया, उसे रण भूमि में मारकर विजय प्राप्त की और बहुत बड़े क्षेत्र को अपने नियन्त्रण में ले लिया। अहमदशाह अब्दाली के आक्रमणों से उत्पन्न अशान्ति पँजाब में मुगल राज्यपालों की दुर्बलता और केन्द्रीय दिल्ली सरकार की कमजोरियों से लाभ उठाकर आला सिंह ने बरनाला और उसके आसपास के सभी प्रदेश अपने अधिकार में कर लिए। 1762 में अहमदशाह अब्दाली ने दूसरे घल्लूघारे के बाद बाबा आला सिंह को मालवा प्रदेश का अपनी तरफ से नायब नियुक्त किया था। 1764 ईस्वी में इसी आला सिंह ने सिक्ख सरदारों को सरहिन्द के राज्यपाल जैन खा के विरूद्ध लड़ाई में सहायता दी। जिसमें जैन खान की पराजय हुई, 1765 ईस्वी में अहमदशाह अब्दाली ने बाबा आला सिंह को एक नगाड़ा और एक झण्डा शाही सम्मान के रूप में दिए। बाबा आला न केवल एक वीर सेनापति ही थे बल्कि वे एक पवित्र और धार्मिक सिक्ख भी थे। उनका जीवन अत्यन्त पवित्र और स्वच्छ था। एक बार उन्हें अहमदशाह अब्दाली को सवा लाख रूपये दण्ड रूप में अपने सिक्खी स्वरूप के लिए देना पड़े। उनकी पत्नी श्रीमती फतों जी ने गरीबों, अनाथों और असहाय लोगों के लिए धर्मार्थ लँगर प्रारम्भ कर रखा था। सन् 1765 ईस्वी में बाबा आला सिंह जी का देहान्त हो गया। उसके स्थान पर उनका पोता सरदार अमर सिंह इस मिसल का शासक नियुक्त हुआ। उनके शासनकाल में यमुना नदी और सतलुज के बीच पटियाला रियासत सभी राज्यों से सबसे अधिक शक्तिशाली बन गई। उन्होंने मनीमाजरा, कोट कपूरा, सैफाबाद और भठिण्डा को जीतकर अपने राज्य में शामिल कर लिया। इसके अतिरिक्त उनहोंने हाँसी, हिसार और रोहतक को भी अपने अधिकार में ले लिया। वे इतने शक्तिशाली हो चुके थे कि भट्टी और मुगल उनकी बढ़ती हुई शक्ति को समाप्त न कर सके, इसलिए अहमदशाह अब्दाली ने इन्हें ‘महाराजाधिराज’ की उपाधि भी दी। मार्च, 1762 ईस्वी में अमर सिंह जी का भी देहान्त हो गया। अमर सिंह के पश्चात् इस मिसल के तीसरे उत्तराधिकारी साहिब सिंह जी थे। वह छोटी आयु के ही थे, इसलिए मिसल का कार्यभार उनकी बहन राजकुमारी राज कौर तथा साहिब कौर के हाथ आया। केवल सात वर्ष का बालक कमजोर शासक समझा जाने लगा। अतः उन दिनों मराठों ने पटियाला पर आक्रमण कर दिया। इस विकट समय में उनकी बहन साहब कौर ने मराठों का डटकर मुकाबला किया और उनको पराजित करके मार भगाया। कुछ समय बाद साहिब सिंह और उनकी पत्नि आशा कौर के बीच कुछ घरेलू झगड़ा हो गया। उन्होंने महाराज रणजीत सिंह को मध्यस्थ नियुक्त किया। इसी बहाने से रणजीत सिंह ने लगातार तीन बार अपनी सेनाएँ सतलुज नदी पर मालवा प्रदेश को विजय करने के लिए भेजी परन्तु वे इस क्षेत्र पर अधिकार न कर सकीं। अँग्रेजों के दिल्ली व हरियाणा में पहुँचने के कारण परिस्थिति बदल गई। नाभा, जींद और कैथल की रियासतें भी इस मिसल की ही शाखाएँ थीं। चाहे उनके मिसलदार अलग-अलग थे, इस मिसल का महाराजा रणजीत सिंह से मतभेद हो गया क्योंकि उन्होंने अपनी शक्ति का प्रदर्शन किया था। अतः इन सभी रियासतों ने अँग्रेजों की राखी (सुरक्षा) माँग ली। इस प्रकार अँग्रेजों ने महाराजा रणजीत सिंह को 1809 ईस्वी में अमृतसर संधि पर हस्ताक्षर करने पर विवश कर दिया और इन रियासतों को अपने शरण में लेकर जिन्दा रखा।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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