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5. शुक्रचकिया मिसल

शुक्रचकिया गाँव अमृतसर जिले में स्थित है। इसी गाँव के सरदार नौध् सिंह जी इस मिसल के सँस्थापक व जत्थेदार थे। आप जी के पिता-पितामाह प्राचीनकाल से ही यहाँ निवास करते थे। आपके पिता सरदार बुध सिंह एक बहादुर योद्धा तथा प्रगतिशील नेता था। इन्होंने कई युद्धों में भाग लिया, अतः आपके शरीर पर 40 घाव थे। बन्दा सिंघ बहादुर जी के सरहिन्द फतेह करने के उपरान्त आप सिक्ख सम्प्रदाय में एक युद्ध में 1712 ईस्वी में काम आ गए। इस प्रकार आपके जत्थे का नेतृत्त्व आपके पुत्र सरदार नौध सिंह जी ने सम्भाला। जब सरदार कपूर सिंह जी ने तरूण दल का गठन किया तो सरदार नौध सिंह जी ने अपने जत्थे का विलय तरूण दल में कर दिया। तरूणा दल ने पँजाब का जिला गुजराँवाला विजय कर लिया। तब सरदार नौध सिंह जी ने यहीं अपना मुख्याला बना लिया और यहीं से अफगानों के साथ सीधी टक्कर लेते रहे। आप अफगानों के साथ जूझते हुए मजीठा क्षेत्र के पास रणक्षेत्र में वीरगति पा गए। आपकी शहीदी के समय आपके पुत्र सरदार चढ़त सिंह की आयु केवल 5 वर्ष की थी। सरदार चढ़त सिंह जी का जन्म सन् 1721 ईस्वी में हुआ। सन् 1752 तक सरदार चढ़त सिंह के साथियों की सँख्या काफी बढ़ गई, जिसके कारण उन्होंने दोआबा रचना का बहुत सा प्रदेश अपने अधीन कर लिया। सन् 1756 ईस्वी में उनका विवाह गुजराँवाला के सरदार अमीर सिंह की कन्या से हुआ, जिससे उन दोनों के वँश बहुत शक्तिशाली हो गए और दोनों वँशों से मिलकर एक नई मिसल बन गई, जिसका कालान्तर में शुक्रचकिया नाम पड़ गया क्योंकि ये दोनों परिवार इसी गाँव के रहने वाले थे। सन् 1758 ईस्वी में चढ़त सिंह ने ऐमीनाबाद पर आक्रमण कर दिया और वहाँ के मुगल फौजदार को पराजित करके भगा दिया। इस वर्ष आपने स्यालकोट पर आक्रमण करके उसको अपने अधीन कर लिया। आपने इस प्रकार प्रगति करते-करते अपने पास पन्द्रह हजार सवार और पाँच हजार पैदल सेना तैनात कर ली। चढ़त सिंह की बढ़ती हुई शक्ति ने लाहौर के राज्यपाल ख्वाजा आबेद को परेशान कर दिया। अतः उसने चढ़त सिंह की शक्ति को समाप्त करने का निश्चय कर लिया। सन् 1760 ईस्वी में उसने एक विशाल सेना लेकर गुजराँवाला पर आक्रमण किया। दूसरी तरफ चढ़त सिंह की सहायता के लिए अन्य मिसलदार भी अपनी-अपनी सेनाएँ लेकर गुजराँवाला पहुँच गए। इस पर घमासान युद्ध हुआ, इस युद्ध में राज्यपाल ख्वाजा आवेद की बुरी तरह पराजय हुई और वह अपना सा मुँह लेकर लौट गया। सन् 1762 ईस्वी में अहमदशाह अब्दाली ने छठीं बार भारत पर आक्रमण किया। जिसे सिक्ख इतिहास में बड़ा घल्लुघारा कहते हैं। अब्दाली के इस सिक्ख हत्याकाण्ड में जो वीरता और साहस सरदार चढ़त सिंह जी ने दिखाया, वह अद्भुत का था, उसकी उपमा हर सिक्ख योद्धा ने की है। उस समय सरदार चढ़त सिंह के शरीर पर 23 घाव आए थे परन्तु वह स्वाभिमानी सेनानायक जूझता ही रहा था। अब्दाली की शक्ति पँजाब में से समाप्त हो जाने के पश्चात् यह मिसल बहुत प्रसिद्धि को प्राप्त हो गई। प्रतिदिन बहुत से युवक सरदार चढ़त सिंह के पास पहुँचते और उनके सेना में भर्ती होने का निवेदन करते। इस पर सरदार चढ़त सिंह जी उनके समक्ष एक ही शर्त रखते। जो तन मन से सिक्खी धारण करेगा, केवल उन्हीं समर्पित युवकों के को ही शुक्रचकिया मिसल की सेना में सम्मिलित किया जाएगा। सरदार चढ़त सिंह जी की सेना जिधर भी जाती उधर के समस्त क्षेत्र तथा नगर उनकी अधीनता स्वीकार कर लेते और खिराज देने का वचन देते। आपने भँगी सरदार गुजर सिंह के साथ मिलकर जेहलम पार के क्षेत्र पर पूर्ण नियन्त्रण कर लिया परन्तु समय अनुसार सरदार चढ़त सिंघ जी मिसल की प्रगति के लिए विभिन्न-विभिन्न कदम उठाते रहे। जब उन्होंने महसूस किया कि भँगी मिसल का प्रभाव समूचे पँजाब पर बढ़ गया है तो उन्होंने कन्हैया मिसल के साथ संधि करके उसके प्रभाव को रोका। इसी प्रकार उन्होंने रामगढ़िया मिसल के साथ बातचीत जारी रखी। यह निःसंदेह कहा जा सकता है कि सरदार चढ़त सिंह एक सुलझे हुए और स्वाभिमानी सेनानायक थे। निर्णय लेने में इनका कोई सानी नहीं था। पहले नवाब कपूर सिंह जी और उपरान्त सरदार जस्सा सिंह आहलूवालिया के नेतृत्त्व में रहते हुए ये तीक्षण बुद्धि के स्वामी बन गए थे। इनमें सिक्खी की सँवेदनशीलता तथा उत्साह असीम था। सन् 1779 ईस्वी में सरदार चढ़त सिंह जी ने विशाल सेना के साथ जम्मू पर आक्रमण कर दिया किन्तु ठीक उस समय जबकि युद्ध जोरों पर था, गलती से एक बारूद का हथगोला फट जाने से उनकी मृत्यु हो गई। इस प्रकार यह युद्ध वहीं समाप्त करना पड़ा। उस समय शुक्रचकिया मिसल के अधीन रोहतास का किला (जिला झेलम) वजीराबाद, जिला झंग इत्यादि आ चुके थे। सरदार चढ़त सिंह की मृत्यु के साथ उनका बेटा महा सिंह अभी अबोध बालक ही था। उसके बाल्यकाल तक उसकी माता माई देसा इस मिसल का कार्य चलाती रही। सन् 1780 ईस्वी में महा सिंह ने मिसल की बागडोर अपने नियन्त्रण में ले ली। जल्दी ही उन्होंने रयूल नगर, अलीपुर और अकालगढ़ इत्यादि क्षेत्र जीत लिए। जम्मू के प्रदेश को नष्ट-भ्रष्ट कर दिया। उनके अधीनस्थ सरदारों ने उनके विरूद्ध सिर उठाने का प्रयत्न किया तो उन्होंने उन सबको तुरन्त कुचलकर रख दिया। महा सिंह की बढ़ती हुई शक्ति के कारण जय सिंह कन्हैया का उनके साथ ईर्ष्या के कारण मतभेद हो गया। महासिंह ने एक बार फिर जस्सा सिंह रामगढ़िया के सम्मुख उसका प्रदेश वापिस दिलवाने में उसकी सहायता का प्रस्ताव रखा जिसे जस्सा सिंह ने मान लिया और इस तरह बटाला नामक स्थान पर जयसिंह कन्हैया के लड़के गुरबख्श सिंह और जस्सा सिंह के बीच घमासान युद्ध हुआ, जिसमें गुरबख्श सिंह मारा गया। बाद में महासिंह और जय सिंह के बीच विरोध् समाप्त हो गया। जय सिंह ने अपनी पोती महताब कौर (पुत्री स्वर्गीय गुरबख्श सिंह) का विवाह महा सिंह के लड़के रणजीत सिंह से कर दिया। इस प्रकार रणजीत सिंह की शक्ति बढ़ गई। सन् 1793 ईस्वी में महा सिंह की मृत्यु हो गई और उसके स्थान पर रणजीत सिंह इस मिसल का सरदार नियुक्त हुआ और बाद में उन्होंने विकास करते करते पूरे पँजाब पर नियन्त्रण कर लिया और पँजाब के शासक बन गए।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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