SHARE  

 
jquery lightbox div contentby VisualLightBox.com v6.1
 
     
             
   

 

 

 

2. बाल्यकाल

अरजन देव जब बालक थे तब से ही उन्हें आध्यात्मिक ज्ञान धरोहर में मिलना प्रारम्भ हो गया क्योंकि समस्त बचपन उनका नाना श्री गुरू अमरदास साहिब जी की देखरेख में व्यतीत हुआ। गुरू गोदी में पले अरजन देव जी का स्वभाव अपने दोनों बड़े भाईयों से भिन्न था। वह अपने पिता गुरू रामदास जी की तरह सदैव समर्पित रहते और निष्ठावान सेवक की तरह आज्ञा पालन के लिए तत्पर दिखाई देते। इन विशेष गुणों के कारण नाना-दोहता का स्नेह इतना प्रगाढ़ रूप धारण कर गया कि स्वयँ गुरूदेव ने उन्हें बाणी कँठ करवानी प्रारम्भ कर दी। इस प्रकार अरजन देव जी के दिल में भक्ति काव्य के प्रति रूची जागृत हो गई उन्होंने राग विद्या, छँदा बन्दी इत्यादि करने की कला भी सीखी यह देखकर नाना गुरूदेव ने भविष्यवाणी कीः "दोहता बाणी का बोहिथा, अर्थात बाणी का जहाज"। श्री गुरू अरजन देव जी को साँसारिक शब्द-बोध श्री गोइँदवाल साहिब जी की पाठशाला से प्राप्त हुआ। गुरूमुखी अक्षरों का ज्ञान आपको नाना श्री गुरू अमरदास जी ने दिया तथा आरम्भिक शिक्षा बाबा बुडढा जी के सँरक्षण में हुई। सँस्कृत भाषा का ज्ञान आपने पण्डित वेणी जी से प्राप्त किया। इसके अतिरिक्त आपको राग विद्या में बहुत रूची थी। अतः आपने गुरूघर के कीर्तनियों से समय-समय कीर्तन का अभ्यास किया। आप जी ने चित्रकला में भी निपुणता प्राप्त की तथा शस्त्र विद्या में भी बहुत लगाव था। आप अवकाश के समय अपने सहपाठियों के संग कसरत करते, शस्त्र चलाने का अभ्यास करते तथा घुड़सवारी करने की प्रतियोगिता में भाग लेते। वास्तव में आप बहुमुखी प्रतिभा के स्वामी थे। आपको बचपन से ही ईश्वर भक्ति के प्रति एक विशेष लगाव था। पुत्र की यह ईश्वर के प्रति आस्था देखकर आपके अभिभावक मन ही मन अत्यँत खुश होते रहते थे। जब आप किशोर अवस्था से युवावस्था में अग्रसर हुए तो प्रकृति ने आपको सुन्दर और आकर्षक छवि प्रदान की। आप कद-पीठ की दृष्टि से लम्बे व भारी निकले। आपके ललाट पर तेजस्व और नयनों में एक विशेष प्रकार के ज्योति पूँज के दर्शन होते। आपके होठों पर सदैव एक मीठी मुस्कान दृष्टिगोचर होती अतः आप मधुर भाषी व्यक्तित्व के स्वामी थे। पिता श्री गुरू रामदास साहिब जी की भाँति पुत्र अरजन देव भी स्वार्थ से दूर केवल त्याग की भावना से ओत-प्रोत रहते। विनम्रता उनका सबसे बड़ा गुण था। सेवा कार्यों में उन्हें भी बड़ा आनन्द मिलता। पिता की आज्ञा पाते ही वे हर तरह के कामों में सँलग्न हो जाते। यही तो कारण था, आज्ञाकारी पुत्र के प्रति पिता गुरू रामदास जी को असीम लगाव था।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
            SHARE  
          
 
     
 

 

     

 

This Web Site Material Use Only Gurbaani Parchaar & Parsaar & This Web Site is Advertistment Free Web Site, So Please Don,t Contact me For Add.