अहमदशाह अब्दाली का छटा आक्रमण
27 अक्तूबर, 1761 ईस्वी की दीवाली के शुभ अवसर पर श्री अमृतसर साहिब जी में चारों
दिशाओं में से आगमन हुआ। अकाल बुँगा के सामने भारी भीड़ थी। सभी मिसलों के सरदार अपने
साथियों सहित धार्मिक सम्मेलन के लिए पधारे थे। ?सरबत खालसा? ने विचार किया कि देश
में अभी तक अब्दाली के दलाल एजेंट हैं और वह लोग देश का हित नहीं सोचते, बल्कि
विद्रोहियों की हाँ में हाँ मिलाते हैं। इनमें जँडियाला नगर का निरँजनिया, कसूरवासी,
पेसेगी, मालेरकोटला के अफगानों तथा सरहिन्द के फौजदार जैन खान के नाम उल्लेखनीय
हैं। कसूर और मालेरकोटला के अफगान तो अहमदशाह अब्दाली की नस्ल के लोग थे। जैन खान
की नियुक्ति अब्दाली ने सरहिन्द के फौजदार के पद पर स्वयँ की थी। केवल निरँजनियों
का महंत आकिलदास अकारण ही सिक्खों से वैर करने लगा था। अतः पँजाब में सिक्खों के
राज्य की सम्पूर्ण रूप में स्थापना करने के लिए इन सभी विरोधी शक्तियों को
नियन्त्रण में करना अति आवश्यक था, परन्तु इस अभियान में न जाने कितनी अड़चने आ जाएँ
और न जाने कब अहमदशाह अब्दाली काबुल से नया आक्रमण कर दे, कुछ निश्चित नहीं था,
इसलिए सिक्ख इन विरोधी शक्ति के साथ कठोर कार्यवाही करने से सँकोच कर रहे थे। इन सभी
तथ्यों को ध्यान में रखकर वह ?गुरमता? पारित किया गया कि सभी सिक्ख योद्धा अपने
परिवारों को पँजाब के मालबा क्षेत्र में पहुँचाकर उनकी ओर से निश्चिंत हो जाएँ और
तभी बाकी के विरोधियों से सँघर्ष करके सम्पूर्ण पँजाब में ?खालसा राज्य? की स्थापना
की जाए।
गुरमते के दूसरे प्रस्ताव में पँथ दोखीओं, पँथ के शत्रुओं से सर्वप्रथम
निपट लिया जाए ताकि वह पुनः गद्दारी न कर सकें। जँडियाले नगर का महंत आकिल दास
सिक्खी स्वरूप में था परन्तु वह सदैव सिक्ख विरोधी कार्यों में सँलग्न रहता था और
शत्रु से मिलीभगत करके पँथ को कई बार हानि पहुँचा चुका था, अतः निर्णय यह हुआ कि
सर्वप्रथम सरदार जस्सा सिंह आहलूवालिया जी महंत आकिल दास से ही निपटेगें। इस प्रकार
जँडियाला नगर घेर लिया गया परन्तु शत्रु पक्ष ने तुरन्त सहायता के लिए अहमदशाह
अब्दाली को पत्र भेजा। अहमदशाह अब्दाली ने पहले से ही सिक्खों को उचित दण्ड देने का
निश्चय कर रखा था।
अतः उसने पत्र प्राप्त होते ही काबुल से भारत पर छठवाँ आक्रमण
कर दिया। वह सीधे जँडियाले पहुँचा परन्तु समय रहते सरदार जस्सा सिंह जी को अब्दाली
के आने की सूचना मिल गई और उन्होंने घेरा उठा लिया और अपने परिवार तथा सैनिकों को
सतलुज नदी पर किसी सुरक्षित स्थान पर पहुँचने का आदेश दिया ताकि निश्चिंत होकर
अब्दाली से टक्कर ली जा सके। जब अहमदशह जँडियाला पहुँचा तो सिक्खों को वहाँ न देखकर
बड़ा निराश हुआ। दूसरी ओर जब मालेरकोटला के नवाब भीखन खान को ज्ञात हुआ कि सिक्ख
केवल 10 मील की दूरी पर आ गए हैं तो वह बहुत चिन्तित हुआ। उस समय सरहिन्द का
सूबेदार जैन खान दौरे पर किसी निकट स्थल पर ही था। भीखन खान ने उससे सहायता की याचना
की। इसके अतिरिक्त उसने तुरन्त अब्दाली को भी यह सूचना भेजी कि सिक्ख इस समय उसके
क्षेत्र में एकत्रित हो चुके हैं। अतः उन्हें घेरने का यही शुभ अवसर है। अहमदशाह
अब्दाली के लिए तो यह बड़ा अच्छा समाचार था। उसने 3 फरवरी को प्रातःकाल ही कूच कर
दिया और किसी स्थान पर पड़ाव डाले बिना सतलुज नदी को पार कर लिया। अब्दाली ने 4 फरवरी
को सरहिन्द के फौजदार जैन खान को सँदेश भेजा कि वह 5 फरवरी को सिक्खों पर सामने से
हमला कर दे। यह आदेश मिलते ही जैन खान, मालेरकोटले का भीखन खान, मुर्तजा खान वड़ैच,
कासिम खान मढल, दीवान लच्छमी नारायण तथा अन्य अधिकारियों ने मिलकर अगले दिन सिक्खों
की हत्या करने की तैयारी कर ली।
अहमदशाह 5 फरवरी, 1762 ईस्वी को प्रातःकाल मालेरकोटला के निकट
बुप्प ग्राम में पहुँच गया। वहाँ लगभग 40,000 सिक्ख शिविर डाले बैठे थे, अधिकाँश
अपने परिवारों सहित लक्खी जँगल की ओर बढ़ने के लिए विश्राम कर रहे थे। इस स्थान से
आगे का क्षेत्र बाबा आला सिंह का क्षेत्र था, जहाँ बहुसँख्या सिक्खों की थी। फौजदार
जैन खान ने सुयोजनित ढँग से सिक्खों पर सामने से धावा बोल दिया और अहमद शाह अब्दाली
ने पिछली तरफ से। अब्दाली का अपनी सेना को यह भी आदेश था कि जो भी व्यक्ति भारतीय
वेशभूषा में दिखाई पड़े, उसे तुरन्त मौत के घाट उतार दिया जाए। जैनखान के सैनिकों ने
भारतीय वेशभूषा धारण की हुई थी। अतः उन्हें अपनी पगड़ियों में पेड़ों की हरी पत्तियाँ
लटकाने के लिए आदेश दिया गया। सिक्खों को शत्रुओं की इस क्षमता का ज्ञान नहीं था।
अतः वे आकस्मिक आक्रमण के कारण बुरी तरह शिकँजे में फँस गए। फिर भी उनके सरदारों ने
धैर्य नहीं खोया। सरदार जस्सा सिंह आहलूवालिया, सरदार शाम सिंह राठौर सिंधिया तथा
सरदार चढ़त सिंह आदि जत्थेदारों ने तुरन्त बैठक करके लड़ने का निश्चय कर लिया। सिक्खों
के लिए सबसे बड़ी कठिनाई यह थी कि उनका सारा सामान, हथियार, गोला बारूढ और खाद्य
सामग्री वहाँ से चार मील की दूरी पर करमा गाँव में था, इसलिए सिक्ख सेनापतियों ने
यह निर्णय लिया कि पहले सामग्री वाले दस्तों से सम्बन्ध जोड़ा जाए और उसे बरनाला में
बाबा आला सिंह के पास पहुँचा दिया जाए क्योंकि उस समय सिक्खों को एकमात्र बाबा जी
से ही सहायता प्राप्त होने की आशा थी। उन्होंने इसी उद्देश्य को लेकर बरनाला नगर की
ओर बढ़ना शुरू कर दिया और अपने परिवारों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए उनको अपने
केन्द्र में ले लिया। इस प्रकार योद्धाओं की मजबूत दीवार में परिवारों को सुरक्षा
प्रदान करते हुए और शत्रुओं से लोहा लेते हुए आगे बढ़ने लगे। जहाँ कहीं सिक्खों की
स्थिति कमजोर दिखाई देती, सरदार जस्सा सिंह उनकी सहायता के लिए अपना विशेष दस्ता
लेकर तुरन्त पहुँच जाते। इसी प्रकार सरदार चढ़त सिंह और सरदार शाम सिंह नारायण
सिंघिया ने भी अपनी वीरता के चमत्कार दिखाए। अहमदशाह अब्दाली का लक्ष्य सिक्खों के
परिवारों को समाप्त करने का था।