8. पँजाब की राजनीतिक दशा
महाराजा रणजीत सिंघ सारे पँजाब को एक राज्य प्रबन्ध के अधीन लाना चाहते था पर यह
काम काफी कठिन था। पँजाब उस समय छोटे-छोटे राज्यों में बँटा हुआ था। मध्य पँजाब,
मैण दुआबा तथा मालवे पर मिसलों के सरदारों का अधिकार था। ये सरदार आपसी फूट के
शिकार थे और महाराजा रणजीत सिंघ के साथ भी ईर्ष्या-द्वैष रखते थे। इसके अतिरिक्त
कसूर क्षेत्र, मुल्तान, डरो इस्माइल खान, बन्नू कोहाट टांक, अटक, कश्मीर तथा
बहावलपुर मुसलमानों के कब्जे में थे। जम्मू, काँगडा, मँडी सुकेत, बसोली, कुल्लू आदि
पहाडी क्षेत्र राजपूतों के पास थे। पूर्व में अँग्रेजों की बहुत भारी शक्ति थी जो
सारे देश को अपने राज्य में शामिल करना चाहते थे। चारों ओर विरोधी शक्तियाँ थी। इनके
होते हुए महाराजा रणजीत सिंघ ने अपना विशाल राज्य कायम किया। वह सारे पँजाब को
एकत्र न कर सके, फिर भी इसके लिए विशाल क्षेत्र में उन्होंने खालसा राज्य को
स्थापित किया उसमें पँजाबियों के दिलों में पँजाबियत का, पँजाबी होने के कारण
अपनत्व की भावना महाराजा रणजीत सिंघ ने सबसे पहले उत्पन्न कर दी।