5. रणजीत सिंघ जी महाराजा की पदवी से
सम्मानित
13 अप्रैल, सन् 1801 ईस्वी तदानुसार संवत् 1858 को वैशाखी वाले दिन लाहौर नगर के
किले में एक विशाल समारोह का आयोजन किया गया। इस विशाल शाही समारोह में समस्त पँजाब
में से बड़े बड़े सिक्ख सरदारों, मुसलमान तथा हिन्दू राजाओं, स्थानीय मुखियों को इस
आयोजन में भाग लेने के लिए आमन्त्रित किया गया। सिक्ख धर्म की मर्यादा अनुसार
सर्वप्रथम अरदास की गई और तत्पश्चात् एक शाही दरबार सजाया गया, जिसमें रणजीत सिंघ
जी को शाही सिँहासन पर बैठाया गया, तब बाबा साहिब सिंघ बेदी ने उनको परम्परा अनुसार
राजतिलक किया। तभी समस्त अतिथियों की इच्छा अनुसार उनको महाराजा की उपाधि से
सम्मानित किया गया। नगर के मन्दिरों तथा मस्जिदों में भी उनकी उन्नति के लिए
प्रार्थना की गई। नगरवासियों ने बहुत खुशी मनाई। कई दिन तक दीपमाला की जाती रही। इस
शुभ अवसर पर एक विशेष प्रकार का सिक्का जारी किया गया, जिसको नानकशाही नाम दिया गया।
इस पर फारसी लिपि में श्री गुरू नानक देव साहिब जी तथा श्री गुरू गोबिन्द सिंह
साहिब जी के नाम अंकित करके अकालपुरूष (परमात्मा) की फतह की घोषणा दर्शाई गई। पहले
दिन के समस्त सिक्के जो ढाले गए थे, सभी के सभी खैरात में अलग अलग स्थानों पर बाँट
दिए गए।