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36. लद्दाख पर विजय

इस समय कुँवर शेर सिंघ कश्मीर का हाकिम था। एक बार वह कश्मीर की सीमा का दौरा करता हुआ कश्मीर और लद्दाख की सीमा के पास पहुँचा, जो कश्मीर से उत्तर पूर्व की ओर है, उसने देखा कि लद्दाख की पहाड़ियों के ऊपर की कई राहें कश्मीर घाटी में आती हैं। उसने विचार किया कि कश्मीर की सुरक्षा के लिए आवश्यक है कि उन राहों पर अधिकार किया जाए। यह तभी हो सकता था यदि लद्दाख को जीतकर सिक्ख राज्य का अंग बनाया जाए। ऐसा करने से एक तो इधर से आक्रमण का खतरा हट जाता था और दूसरे तिब्बत, चीन तथा गिलगट के साथ व्यापार की राह खुल जाती थी। कुँवर शेर सिंघ ने लाहौर आकर अपनी योजना को महाराजा साहिब के सम्मुख रखा। उन्होंने इसको हर पक्ष से सोचा विचारा और अपने सलाहकारों, दरबारियों की भी सलाह ली। उन्होंने कुँवर साहिब की बुद्धिमत्ता की दाद दी और इस सुझाव को पसन्द किया। महाराजा साहिब ने इसकी स्वीकृति दे दी। कुँवर शेर सिंघ ने सरदार ज़ोरावर सिंघ की कमान में 8,000 फौज भेजी। यह फौज पहाड़ियों की कठिन चढ़ाई करके इसकरदू पहुँच गई। लद्दाखी बहुत बहादुरी से लड़े। दो मास तक लड़ाई होती रही। अन्त में वे लद्दाखी हारकर भाग गए। लद्दाख का इलाका सिक्ख राज्य का अंग बन गया। सरदार ज़ोरावर सिंघ ने इसकी सुरक्षा के लिए दो किले बनाए।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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