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32. मनकेरे पर कब्जा

सन् 1821 (संवत् 1878) में महाराजा साहिब ने पठान राज्य के ठिकाने मनकेरे के इलाके को फतेह करने के लिए फौज भेजी। बाद में वह स्वयँ भी जेहलम पार करके खुशाब से होते हुए कुंदियाँ पहुँचे। सरदार हरी सिंघ नलुआ और मिश्र दीवानचँद भी अपनी फौज लेकर पहुँच गए। सारा लश्कर कुंदियाँ से चलकर मनकेरे के इलाके में जा दाखिल हुआ। पहले भखर का किला फतह किया गया। फिर सिक्ख फौज के एक हिस्से ने डेरा इसमाइल खाँ पर हल्ला किया और शीघ्र ही उस पर कब्जा कर लिया। फौज के एक और दस्ते ने ‘लइया, खानगढ़’ आदि किले फतह कर लिए। फिर खालसा फौज मनकेरे की ओर बढ़ी। नवाब अहमद खाँ ने डटकर सामना किया। पन्द्रह दिन लड़ाई होती रही। अन्त में नवाब ने हार मान ली। उसने सरकार के अधीन होकर रहना मान लिया। महाराजा साहिब ने मनकेरे पर तो कब्जा कर लिया पर नवाब अहमद खाँ को डेरा इस्माइल खाँ जागीर के रूप में दे दिया। इस आक्रमण में लगभग दस लाख रूपये वार्षिक आमदनी का इलाका सिक्ख राज्य में शामिल किया गया।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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