29. पठानों में खालसा का भय
ग्यारहवीं शताब्दी के आरम्भ में महमूद गजनवी ने राजा अनँगपाल को हार देकर पँजाब तथा
भारत को लूटा था। उसके पश्चात् हमलों की परिपाटी ही पड़ गई। बार बार पश्चिमोत्तरी
देशों से आक्रमण, पाप की बारात आती रहती, पँजाब को लूटती और यहाँ की नौजवान लड़कियों,
नौजवानों को दास बनाकर अपने देशों में बेचने के लिए हाँक ले जाते। महाराजा रणजीत
सिंघ जी ने इस बाढ़ को बाँध लगा दिया। पठानों को विश्वास दिलवा दिया कि जिन लोगों को
तुम भेड़ बकरी समझ कर काटते रहे हो, वे अब शेर बन चुके हैं और तुम्हारी गर्दन पकड़कर
घुमा देने वाले तथा तलवार के धनी शूरवीर योद्धा बन गए हैं, जैसे कभी इस देश वाले
पश्चिमोत्तर की ओर से आने वाले आक्रमणकारियों से वाहित हुआ करते थे। उसी तरह उन
हमलावरों के परिवार अब सरदार हरी सिंह नलुआ तथा बाबा अकाली फूला सिंह जी के नाम से
वाहित होने लगे। बहुत गर्व की बात है कि खालसा बहादुरों ने पठानों के दिलों पर जो
अपना भय जमाया तथा सिक्का गाड़ा, वह ऐसी बेकिरकी या जवर से नहीं बल्कि अपनी वीरता तथा
बाहुबल के करिश्मे दिखाकर किया। महाराजा साहिब की सारी फौज को पक्की हिदायत होती थी
कि विजयी हुए शहर में किसी प्रकार की लूटपाट या धक्केशाही न की जाए और असैनिक,
बेहथियार लोगों पर हाथ न उठाया जाए। इस जीत ने पँजाबियों को स्वाभिमान तथा
आत्मविश्वास दिलाया।