28. पेशावर पर अधिकार
अटक पर कब्जा करने के पश्चात् उन्होंने पेशावर को अधिकार में लेने की सोची। पेशावर
काबुल (अफगानिस्तान) राज्य का हिस्सा है। सन् 1818 (संवत् 1875) में महाराजा साहिब
ने पेशावर की ओर चढ़ाई की। रूहतास, रावलपिंडी, पँजा साहिब आदि से होते हुए हजरो
पहुँचे। दरिया अटक पार के इलाके की जाँच पड़ताल और शत्रुओं के ठिकानों का पता करने
के लिए एक फौजी दस्ता दरिया पार भेजा गया। पठानों को इसका पता लगा। वे सात आठ हजार
की सँख्या में एकत्रित होकर खेराबाद की पहाड़ियों में सिक्ख फौजी दस्ते के रास्ते के
दोनों ओर डटकर बैठ गए और जब सिक्ख गोली की मार के नीचे आये तो उनको दूर बैठे ही भून
दिया गया। जब महाराजा साहिब को इस घटना का पता चला तो उनको बहुत रोष हुआ। उन्होंने
रावी, चनाब (झना), जेहलम के मल्लाह साथ लिए हुए थे। उनको हुक्म दिया गया कि पता करो
कि किस स्थान से दरिया अधिक आसानी से पार किया जा सकता है। फिर महाराजा साहिब ने
ललकारकर ऊँची आवाज में कहा, ‘अटक उसको अटका सकता है जिसके मन में अटक है, झकझका है,
जिनके मन अटक नहीं, उनको यह अटका नहीं सकता।’ यह कह कर पँजाब के शेर ने अपना हाथी
दरिया में बढ़ा दिया। दरिया के बीच में जाकर वह हाथी खड़ा करके डट गए। उनकी सेना
जैकारे गजाकर दरिया में घुस गई और जल्दी ही अगले पार पहुँच गई। आगे पठान भी तैयार
थे। बहुत घमासान की लड़ाई हुई। सिक्ख योद्धाओं ने खूब तलवार चलाई। अकाली फूला सिंघ
ने वो जौहर दिखलाए कि पठानों के छक्के छूट गए। कई हजार पठान मारे गए। उन्होंने
समझौते का झण्डा खड़ा कर दिया। उन्होंने हार मान ली ओर अधीनता स्वीकार कर ली। इस
प्रकार महाराजा साहिब जी ने खेराबाद तथा जहाँगीरे के किलों पर अधिकार कर लिया। इन
किलों पर कब्जा करने के पश्चात् खालसा फौज आगे पेशावर की ओर बढ़ी। वहां के हाकिम यार
मुहम्मद खाँ को जब पता चला तो वह पेशावर छोड़ कर भाग गया। महाराजा ने तुरन्त जाकर
शहर पर कब्जा कर लिया। जहाँदाद खाँ को पेशावर का हाकिम नियुक्त करके वह वापिस अटक आ
गए। महाराजा साहिब की पेशावर से वापसी के शीघ्र ही पश्चात् यार मुहम्मद खाँ पेशावर
वापिस आ गया। उसने जहाँदाद खां को निकाल दिया। साथ ही अपने वकील महाराजा साहिब की
सेवा में भेजा और विनती की कि पेशावर का हाकिम मुझे बनाया जाए। मैं सरकार के अधीन
तथा वफादार रहूँगा और हर साल एक लाख रूपया खराज भेंट किया करूँगा। महाराजा साहिब ने
उसकी विनती मानकर उसको पेशावर का हाकिम नियुक्त कर दिया। पेशावर की लड़ाई में महाराजा
साहिब को 14 तोपें, बहुत से घोड़े और जँगी सामान मिला। यह लड़ाई कई दृष्टिकोणों से
महानता रखती है। इसने पश्चिमोत्तर की परम्परा को तोड़कर उन आक्रमणों के सदियों से बने
आ रहे शिकारों के डेरे हमलावरों के घर पर डलवा दिए।