26. सरदार निहाल सिंघ अटारी
सन् 1817 (संवत् 1874) की गर्मियों में महाराजा बीमार हो गए। उनकी दशा आए दिन बिगड़ती
गई। सारी प्रजा चिन्तातुर हो उठी। उनकी आरोग्यता के लिए न केवल सिक्खों ने ही अखण्ड
पाठ करवा के अरदासें कीं और पुण्य दान दिए, बल्कि मुसलमानों ने मसीतों में कुरान
शरीफ के खतम करवाए और निआजें बाँटी गईं और हिन्दुओं ने मंदिरों तथा तीर्थों पर यज्ञ
तथा दान और प्रार्थनाएँ कीं परन्तु महाराजा साहिब की दशा में सुधर न आया। सरदार
निहाल सिंघ अटारी ने महाराजा साहिब के लिए वह कुछ किया जो बाबर ने अपने पुत्र हुमायूँ
की खातिर किया था। उसने उनके पलँग के पास तीन बार परिक्रमा की और अरदास की कि ‘हे
परमात्मा, महाराज साहिब की बीमारी मुझे लग जाए और वे राजी हो जाएँ’। यह अरदास करके
अटारी चला गया। वहाँ वह बीमार होकर शरीर त्याग गया और महाराजा साहिब स्वस्थ हो गए।