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24. अटक पर नियँत्रण

अब महाराजा साहिब ने सरहद की ओर राज्य बढ़ाने की नीति बनाई। उनका ख्याल था कि पँजाब तथा हिन्दुस्तान की रक्षा तभी हो सकती है यदि पठानों की शक्ति को दबा दिया जाए। कश्मीर की मुहिम के समय सिक्ख योद्धाओं को पठान फौजों के गोह मैदान का पता लग गया था और यकीन हो गया था कि हम उनको हरा सकेंगे। दरिया सिंध के किनारे के ऊपर अटक का किला पश्चिमी हमलावरों के लिए हिन्दुस्तान का दरवाजा था। इनके आक्रमणों से देश को बचाने के लिए अटक पर कब्जा करना आवश्यक था। महाराजा साहिब ने इसको अधिकार में लेने का इरादा कर लिया। सन् 1813 (संवत 1870) में दीवान मुहकमचँद, सरदार हरी सिंघ नलुआ तथा सरदार देसा सिंघ मजीठिया की कमान में तकड़ी फौज अटक की ओर भेजी गई। जब काबुल के वजीर फतेह खाँ को महाराजा की फौज द्वारा अटक पर चढ़ाई करने का पता लगा तो उसने अपने भाई, दोस्त मुहम्मद की कमान में बहुत सेना भेजी परन्तु उसके पहुँचने से पूर्व ही सिक्ख फौज ने अटक का किला अधिकार में ले लिया। दोस्त मुहम्मद ने किले के आसपास घेरा डाल लिया। कुछ समय के पश्चात् सिख फौज ने पठानी डेरे पर हल्ला किया। हजरो के पास बहुत खूनी लड़ाई हुई। दोस्त मुहम्मद घायल हो गया और उसकी फौज घबराकर भाग उठी। खालसा फौज ने काफी दूर तक उसका पीछा किया। बुरहान का इलाका और मखँड तथा अटक के समीप के और किले भी कब्जे में कर लिए गए। यह विजय बहुत महत्वपूर्ण थी। एक तो इससे महाराजा साहिब दरिया तक के इलाके के मालिक बन गए, दूसरे उन्होंने उन पठानों को हराया जो पहले बेरोक इस देश को आकर लूटा करते थे। इस विजय ने महाराजा साहिब को देश में हरमन प्यारा तथा बैरियों के लिए हौवा बना दिया।

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 

 
     
     
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