23. कोहिनूर हीरा
काबुल के बादशाह शाह शुजाह को उसके भाई शाह महमूद ने हराकर देश से बाहर निकाल दिया।
वह भागकर पनाह की खोज में पँजाब आया। महाराजा रणजीत सिंघ उस समय खुशाव के पास थे।
उन्होंने शाह शुजाह को बुलाया और उसका बहुत आदर किया। उन्होंने उसके निर्वाह के लिए
पर्याप्त रकम दी और आगे के लिए भी पैंशन लगा दी और कहा कि जहाँ जी करे रिहायश कर
लो। उसने रावलपिंडी रहना पसन्द किया। कुछ समय के पश्चात् अपना परिवार रावलपिंडी
छोड़कर वह काबुल चला गया और शाह महमूद को हराकर बादशाह बन गया परन्तु चार मास के
पश्चात् उसको फिर सिँहासन से उतारा गया और कैद करके कश्मीर भेजा गया। महाराजा साहिब
ने उसके भाई तथा परिवार को लाहौर बुला लिया जहाँ उन्हें रहने के लिए मकान और गुजारे
के लिए काफी रकम दी और पैंशन बाँध दी। काबुल के वजीन फतेह खाँ ने कश्मीर पर चढ़ाई कर
दी और शाह शुजाह को पकड़ना चाहा। उसने अपना दीवान गोदड़मल महाराजा साहिब की सेवा में
भेजा और सहायता माँगी। महाराजा साहिब सहायता करने के लिए मान गए। शाह शुजाह कश्मीर
में कैद था। उसके परिवार को बहुत फिक्र हुई। उनको निश्चय था कि वजीर फतेह खाँ शाह
शुजाह को मार देगा। उसकी घरवाली वफा बेगम ने फकीर अजीजद्दीन तथा दीवान मुहकमचँद को
कहा कि यदि महाराजा साहिब मेरे पति को कश्मीर से छुड़ा लाएँ तो मैं उनको कोहिनूर का
हीरा धन्यावाद स्वरूप पेश करूँगी। महाराजा साहिब मान गए। दीवान मुहकमचँद की कमान
में खालसा फौज कश्मीर की ओर भेजी गई। फतेह खाँ की फौज भी आ मिली। डटकर लड़ाई हुई।
कश्मीर का हाकिम अता मुहम्मद हार गया। दीवान मुहकमचँद ने शाह शुजाह को कैद में से
निकाला और फतेह खाँ के विरोध तथा ईर्ष्या की परवाह न करते हुए उसको लाहौर ले आए। जब
शाह शुजाह को लाहौर अपने परिवार में रहते हुए कुछ मास व्यतीत हो गए तो दीवान
मुहकमचँद तथा फकीर अजीजद्दीन ने उसको काबुल की बेगम का इकरार याद करवाया। शाह
टालमटोल करने लग गया। उसने झूठ कह दिया कि मेरी बेगम ने कोहिनूर हीरा कँधार में गहने
रख दिया था, वह हमारे पास नहीं है। फकीर अजीजद्दीन तथा दीवान मुहकमचँद बहुत निराश
हुए। उन्होंने महाराजा साहिब को शाह शुजाह को छुड़वाने की खातिर कश्मीर पर चढ़ाई करने
के लिए प्रेरित किया था। उन्होंने शाह तथा उसकी बेगम पर जोर डाला और उनको अपना वचन
पूरा करने के लिए मना लिया।