21. यूरोप में राजनैतिक परिवर्तन
इसी समय यूरोप में पूर्तगाल और स्पेन के उपमहाद्वीप युद्ध छिड़ जाने पर नैपोलियन के
लक्ष्य में बहुत बड़ी बाधा उत्पन्न हो गई। इस प्रकार अँग्रेजों को नेपोलियन के
आक्रमण का खतरा हट गया। गवर्नर जनरल ने महाराजा साहब को पत्र लिखा कि सतलुज से
दक्षिण की तरफ के सिक्ख राजाओं, सरदारों को अँग्रेजी सरकार ने अपनी रक्षा में ले
लिया है। साथ ही उसने तकड़ी फौज यमुना के पास भेजी जो बुडियाँ तथा पटियाला होती हुई
लुधियाना आ टिकी। इस बात पर महाराजा साहिब को बहुत क्रोध आया। वह युद्ध की तैयारियाँ
करने लग गए। फौज़ ने तोपखाने को फिल्लौर में एकत्र होने का हुक्म दे दिया। अमृतसर के
किले को अधिक पक्का किया गया। तोपें गाढ़ दीं। सभी सिक्ख सरदारों को तैयारी का
हुक्म दे दिया गया। थोडे ही दिनों में एक लाख के करीब फौज लाहौर में एकत्र हो गईं।
परन्तु महाराजा साहिब ने क्रोध में आकर कोई सख्त कदम न उठाया और युद्ध सम्बन्धी पहल
करने वाली कोई बात न की। वे जानते थे कि हमारा राज्य अभी पक्की तरह कायम नहीं हुआ
और हमारे राज्य में भी तथा सीमाओं पर भी आसपास हमारे काफी शत्रु है उन्होंने सोचा
कि यदि हमने अँग्रेजों के साथ युद्ध छेड़ दिया तो बाद में ये लोग भी उठ खड़े होगें।
इसलिए उन्होंने अपने गुस्से को रोके रखने का निर्णय किया। अँग्रेजों ने भी कुछ सेना
कर्नल ऑक्टर लोनी की कमान में दिल्ली से लुधियाना की ओर भेज दी। ऐसा भय हो गया कि
अँग्रेजों और महाराजा में युद्ध होने ही वाला है परन्तु महाराजा रणजीत सिंघ के
प्रमुख सलाहकार फकीर अजीजुद्दीन और उसके साथी कैथल के सरदार भाई उदय सिंघ और जींद
के राजा भाग सिंघ ने सुझाव दिया कि वह अँग्रेजों से टक्कर न लें। महाराजा रणजीत
सिंघ ने ठीक अन्तिम समय में अँग्रेजों के साथ सुलह करने का निश्चय किया। इस बीच
ऑक्टर लोनी अपने साथ काफी सेना लेकर फरवरी 1809 में लुधियाना पहुँच गया था और उसने
यह घोषणा कर दी थी कि सतलुज के पूर्व का सारा क्षेत्र अँग्रेजों के सरँक्षण में समझा
जाएगा। अपनी तरफ से भरसक प्रयास करने के बाद और अँग्रेजों से अधिक से अधिक लाभ
प्राप्त करने की चेष्टा करने के उपरान्त महाराजा रणजीत सिंघ ने अँग्रेजों के साथ
समझौता करने का निर्णय ही उचित समझा। ऐसा करने के कुछ विशेष कारण निम्नलिखित हैः
1. महाराजा रणजीत सिंघ जानते थे कि उसके जो साथी युद्ध करने की
सलाह दे रहे थे वास्तव में उसके हितैषी नहीं थे। वे वही सरदार थे जिनको रणजीत सिंघ
ने कुछ समय पहले ही अपने अधीन किया था। वे चाहते थे कि अँग्रेजों के साथ युद्ध करके
उसका जल्दी पतन हो जाए । 2. रणजीत सिंघ तो अभी अपने "राजतंत्र" की स्थापना के
आरभ्भिक काल में था। उसने अपना शासन अच्छी तरह से स्थापित भी नहीं किया था और न ही
वह अभी तक सारे पँजाब को अपने अधीन कर सका था। उसको भली-भाँति पता था कि अँग्रेजों
के साथ युद्ध करने के परिणामस्वरूप उसके पुराने विरोधी अफगान अथवा पठान उसका लाभ
उठाकर उसके लिए कठिनाइयाँ पैदा करेंगे और हो सकता है कि वे पश्चिम की ओर से उस पर
आक्रमण ही कर दें। 3. रणजीत सिंघ को यह अच्छी तरह मालूम था कि उसके अपने "साधन"
बहुत सीमित हैं और न ही अभी उसके पास इतनी अधिक सेना है कि अँग्रेजों के साथ युद्ध
कर सके। उसने स्वयँ लार्ड लेक के कैम्प में छुपे तौर पर जाकर देख लिया था कि
अँग्रेजों की सेना कितनी कुशल व शक्तिशाली है। इन सब बातों को सामने रखते हुए रणजीत
सिंघ ने इसी में अपनी भलाई समझी कि अँग्रेजों के साथ संधि करके मित्रता स्थापित कर
ली जाए। जिसके परिणामस्वरूप उसको न केवल अँग्रेजों की तरफ से मान्यता मिल जाए बलिक
वह अपनी पूर्व सीमा की सुरक्षा के लिए भी निश्चित हो जाए।