2. शाहज़मान के आक्रमण
अहमद शाह अब्दाली का पोता शाहज़मान सन् 1783 ईस्वी में काबुल के सिँहासन पर बैठा।
उसने भी अपने दादा की भान्ति हिन्दुस्तान पर आक्रमण करने की नीति धारण कर ली। उसने
पहला आक्रमण सन् 1787 ईस्वी में और दूसरा सन् 1788 ईस्वी में किया परन्तु खालसा से
हार खाकर घरेलू हालात के बिगड़ जाने के कारण पँजा साहिब के क्षेत्र से वह आगे न बढ़
सका। तीसरा आक्रमण उसने सन् 1796 ईस्वी में किया। पँजा साहिब पहुँचकर उसने मिस्लों
के सरदारों के मुखी सरदार रणजीत सिंघ शुक्रचकिया को पत्र लिखा कि वह अधीनता स्वीकार
कर ले। उत्तर में रणजीत सिंघ ने कहा कि हम युद्ध के लिए तत्पर हैं। शाहज़मान विशाल
सेना लेकर विजय के ढँके बजाता हुआ लाहौर तक पहुँच गया। उसने लाहौर नगर पर सहज में
ही अधिकार कर लिया। शाहज़मान की विशाल सेना देखकर स्थानीय भँगी मिस्ल के सरदार उसका
सामना न करके, लाहौर नगर को उसके रहमोंकरम पर छोड़कर भाग गए। लाहौर पर कब्जा करके वह
श्री अमृतसर साहिब जी की तरफ बड़ा, जहाँ खालसा की फौजें एकत्रित थीं। वहाँ पर खूब
डटकर खूनी लड़ाई हुई। वह सँयुक्त खालसा फौजों का सामना करने में असमर्थ रहा। अतः
पराजित होकर वापिस लाहौर चला गया। अब उसने कूटनीति का सहारा लेना उचित समझा।
सर्वप्रथम उसने कई मिस्लदारों को पत्र लिखे कि वह उससे लाहौर की सूबेदारी स्वीकार
कर लें परन्तु ऐसा किसी ने भी ने न किया। तभी उसे काबुल से समाचार मिला कि उसके भाई
ने कँधार नगर में बगावत कर दी है और वह काबुल की तरफ बढ़ रहा है। इस पर शाहज़मान ने
तुरन्त वापिस लौटना उचित समझा। जाते हुए उसने पँजाब का प्रशासन हामीज़ शेर मुहम्मद
खान को सौंप दिया। सिक्ख तो इसी अवसर की ताक में थे। उन्होंने समस्त क्षेत्रों पर
पुनः अपना अधिकार स्थापित कर लिया और लाहौर की तरफ बढ़ चले। जल्दी ही सिक्खों ने उसके
द्वारा स्थापित राज्यपालों को मार भगाया। भँगी मिस्ल के सरदारों ने लाहौर पर पुनः
कब्जा कर लिया। दो वर्ष के अन्तराल में शाहज़मान ने भारत पर चौथा आक्रमण सन् 1798
ईस्वी में कर दिया। इस बार सिक्खों ने फिर से उसे अपनी पुरानी नीति के अन्तर्गत
लाहौर तक आने दिया। कहीं कोई आमना-सामना न किया। इसलिए शाहज़मान बहुत चकित हुआ। उसे
झूठा विश्वास दिलवाया गया कि आपकी शक्ति को ध्यान में रखकर सिक्ख भयभीत होकर भाग गए
हैं। तभी सरदार रणजीत सिंघ तथा अन्य सरदारों ने सँयुक्त रूप से लाहौर पर आक्रमण कर
दिया। शाहज़मान को भारी क्षति उठानी पड़ी। वह भयभीत होकर किले में शरण लेकर बैठ गया।
खालसा ने चारों तरफ से नाकेबंदी कर ली, रसद पानी के रास्ते रोक लिए और जितनी तँगी
हो सकती थी, उसको दी। परन्तु शाहज़मान साहस बटोरकर बाहर निकल कर सामना करने का साहस
न कर सका। कहा जाता है कि इस आक्रमण में अफगानों के विरूद्ध रणजीत सिंघ जी ने वह
साहस और वीरता दिखाई, जिसने शाहज़मान के मन पर गम्भीर प्रभाव डाला, क्योंकि रणजीत
सिंघ जी ने लाहौर के शाही दुर्ग के ‘सामन’ बुर्ज पर चढ़कर कई अफगान पहरेदार सैनिकों
को मृत्यु के घाट उतारा था।
भले ही शाहज़मान लाहौर नगर पर अधिकार करने में सफल हो गया किन्तु
अभी उसे सिक्ख सैनिकों से लोहा लेना था तभी रणजीत सिंघ जी ने उसे गरजकर ‘सामन बुर्ज’
से ललकारा और कहा कि ‘अहमद शाह के पोते, सरदार चढ़त सिंघ का पोता तुझसे मिलने आया
है, आ निकल, यदि हिम्मत है तो रणक्षेत्र में मिल ले’ यह ललकार उसने तीन बार दी पर
शाहज़मान ने आगे से चूँ तक नहीं की। बाद में जल्दी ही तँग आकर वह अपने देश को वापिस
चला गया। उस समय जेहलम नदी में अकस्मात् पानी चढ़ आया और शाहज़मान की बहुत सी तोपें
नदी पार करते समय पानी में डूब गईं। उस काल में लड़ाई के लिए तोपों का महत्त्व अधिक
समझा जाता था, इसलिए शाहज़मान ने रणजीत सिंह को लिखा कि यदि वह उसकी सारी तोपें
झेहलम नदी से निकाल कर काबुल भेज दें तो वह उसे इसके बदले में लाहौर का शासक
स्वीकार कर लेगा तथा वह फिर भारत पर आक्रमण नहीं करेगा। रणजीत सिंघ जी ने पन्द्रह
तोपें नदी से निकालकर शाहज़मान को काबुल भेज दीं। इस पर प्रसन्न होकर शाहज़मान ने
रणजीत सिंघ जी को पँजाब का शासक स्वीकार कर लिया। शाहज़मान के वापिस जाने पर लाहौर
पर भँगी मिस्ल के सरदारों ने अधिकार कर लिया। ये तीनों सरदार साहिब सिंह, चेत सिंह
तथा मोहर सिंह आपस में लड़ते-झगड़ते रहते थे। शहर का प्रबन्ध बहुत खराब था। प्रजा
बहुत दुखी थी। शहर की रक्षा का कोई ख्याल नहीं करता था। इस दशा को देखकर कसूर के
नवाब निजामद्दीन ने लाहौर पर आक्रमण कर दिया तथा अधिकार करने की नियत बना ली। लाहौर
की जनता इन सरदारों के राज्य से दुखी तो जरूर थी परन्तु कसूर क्षेत्र के नवाब को यह
लोग इनसे भी बुरी आफत समझते थे। दूसरी ओर लाहौर की जनता ने सरदार रणजीत सिंघ जी की शोभा सुनी
हुई थी कि रणजीत सिंघ जी की प्रजा सुख तथा अमन से बसती है, इसलिए उन्हें विश्वास था
कि यदि लाहौर नगर का शासक रणजीत सिंह बन जाए तो शहर के भाग्य खुल जाएँगे। इस प्रकार
शहर भी सुखी बसेगा और कसूर क्षेत्र के नवाब जैसे किसी व्यक्ति को इस पर आक्रमण करने
का साहस भी न होगा। शहर के हिन्दू, मुसलमानों तथा सिक्ख मुखिया- हकीम हाकमराय,
माहिर मुहकम दीन, मीआ मुहम्मद चाकर, मीआं मुहम्मद कहर, मीआं आशिक मुहम्मद, भाई
गुरबख्श सिंघ आदि लोगों ने रणजीत सिंघ जी की सेवा में एक निवेदन पत्र लिख भेजा,
जिसमें लाहौर नगर पर अधिकार करने के लिए उन्हें प्रेरित किया गया था। सरदार रणजीत
सिंह तो पहले से ही यह सब कुछ चाहता था। फिर भी वह जल्दबाज़ी में काम नहीं करना चाहता
था। उसने अपने एक विश्वसनीय व्यक्ति, काज़ी अब्दुल रहमान को, लाहौर नगर के सारे
हालात की जाँच पड़ताल करने के लिए भेजा और वह स्वयँ अपनी सास सदा कौर के पास सलाह
करने के लिए गए। रानी सदा कौर ने लाहौर पर कब्जा कर लेने के पक्ष में विचार दिया।
इस कार्य के लिए वह स्वयँ भी रणजीत सिंघ जी का साथ देने के लिए तैयार हो गई। दोनों
ने पच्चीस हज़ार सेना एकत्रित कर ली और लाहौर नगर की तरफ चल पड़े। लाहौर नगर के निकट
पहुँचकर उन्होंने वज़ीर खान के बाग में जा डेरा लगाया। रणजीत सिंघ जी ने सेना को दो
भागों में बाँटा। एक हिस्से की कमान रानी सदाकौर ने सम्भाल ली और उसने दिल्ली दरवाज़े
की तरफ से आक्रमण कर दिया। रणजीत सिंघ जी ने लुहारी दरवाजे की तरफ से बढ़ना शुरू कर
दिया। भँगी सरदार सामना न कर सके। भँगी सरदारों में से दो, साहिब सिंह तथा मोहर
सिंह नगर छोड़कर भाग गए और तीसरा चेत सिंह किले में घुस बैठा। ठीक उसी समय वायदे
अनुसार माहिर मुहकमदीन के सँकेत पर नगर के दरवाजें खोल दिए गए। अन्त में सरदार चेत
सिंह भँगी भी किला खाली कर गया। इस प्रकार 7 जुलाई सन् 1799 (आषाढ़ शुक्ल पक्ष, 5
सम्वत् 1856) को रणजीत सिंघ जी ने लाहौर पर अधिकार कर लिया। नगर निवासियों ने बहुत
खुशी मनाई, क्योंकि उन्हें विश्वास था कि न्यायकारी राज्य स्थापित हो गया है। अतः
लाहौर नगर की प्रजा ने प्रभु का धन्यवाद किया और सुख की साँस ली। भँगी सरदारों में
से सरदार चेत सिंह ने अधीनता स्वीकार कर ली। अतः उसके साथ दया का व्यवहार किया गया
इसलिए उसे एक जागीर दे दी गई। दूसरे भँगी सरदारों ने जोध सिंह रामगढ़िये और कसूर
क्षेत्र के नवाब नज़ामुद्दीन के साथ मिलकर लाहौर पर फिर से कब्जा करने की योजना बनाई।
भसीन के मुकाम पर युद्ध हुआ। जिसमें रणजीत सिंघ जी विजयी रहे। इस प्रकार 7 जुलाई,
सन् 1799 ईस्वी को लाहौर नगर पर रणजीत सिंघ जी ने अधिकार कर लिया।